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________________ अर्द्धमागधी आगम-साहित्य में अस्तिकाय डॉ. धर्मचन्द जैन अस्तिकाय जैन दर्शन का एक पारिभाषिक शब्द है जिससे भूत, वर्तमान एवं भविष्यत तीनों में रहने वाले पदार्थों का ग्रहण हो जाता है। अस्तिकाय के आधार पर द्रव्य का एक विशेष वर्गीकरण जैन दर्शन में सम्प्राप्त होता है जो जैनों का अपना वैशिष्ट्य है। इस वर्गीकरण के अनुसार जीव, धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल को अस्तिकाय तथा काल द्रव्य को अनस्तिकाय माना गया है। इस तरह का कोई वर्गीकरण अन्य दर्शनों में नहीं पाया जाता। उदाहरण के लिये आकाश को द्रव्य सभी दर्शनों ने माना है किन्तु उसका लोकाकाश एवं अलोकाकाश के रूप में विभाजन अन्यत्र नहीं मिलता। डॉ. जैन ने प्रस्तुत लेख में अस्तिकाय द्रव्य का सूक्ष्म विवेचन करते हुए अस्तिकाय का द्रव्य से भेद भी दिखाया है और बताया है कि अस्तिकाय द्रव्य तो है किन्तु जो जीव द्रव्य है वह अस्तिकाय भी हो यह आवश्यक नहीं है। -सम्पादक अस्तिकाय 'अस्तिकाय' जैन दर्शन का विशिष्ट पारिभाषिक शब्द है, जो लोक या जगत् के स्वरूप का निर्धारण करता है। अस्तिकाय का निरूपण एवं विवेचन शौरसेनी, अर्द्धमागधी एवं संस्कृत भाषा में रचित आगम-ग्रन्थों, सूत्रों, टीकाओं एवं प्रकरण ग्रन्थों में विस्तार से समुपलब्ध है, किन्तु प्रस्तुत लेख में अर्धमागधी आगमों में निरूपित पंचास्तिकाय पर विचार करना ही समभिप्रेत है। अर्द्धमागधी भाषा में निबद्ध आगम श्वेताम्बर परम्परा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दिगम्बर परम्परा इन्हें मान्य नहीं करती। उनके षट्खण्डागम, कसायपाहुड, समयसार, नियमसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकायसंग्रह आदि ग्रन्थ शौरसेनी प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं। अर्द्धमागधी आगमों में मुख्यतः व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रज्ञापनासूत्र, जीवाजीवाभिगमसूत्र, समवायांग, स्थानांग, उत्तराध्ययन आदि आगमों में पंचास्तिकाय एवं षड् - द्रव्यों का निरूपण सम्प्राप्त होता है। इसिभासियाइं ग्रन्थ भी इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।'
SR No.525081
Book TitleSramana 2012 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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