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16 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 2 1 अप्रैल-जून 2012
संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश' के अनुसार संस्कार से व्याकरणजन्य शुद्धि, प्रशिक्षण, श्रृंगार करने, अन्तःशुद्धि करने सम्बन्धी आदि क्रियाओं का विकास होता है।
'हिन्दू धर्मकोश' के अनुसार शरीर एवं वस्तुओं की शुद्धि व विकास के लिए समय-समय जो कार्य किये जाते हैं उन्हें संस्कार कहते हैं।'
___अधिकांशतः अंग साहित्य में संस्कारों का नामोल्लेख ही मिलता है. जो उत्साहपूर्वक मनाये जाते थे। संस्कारों की संख्या श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में संस्कारों की संख्या भिन्न-भिन्न बतायी गई है। वैदिक परम्परा में संस्कारों की संख्या के सम्बन्ध में काफी मतभेद रहा है, यथा- मनुस्मृति में तेरह, वैखानस में अठारह, वैखानसस्मृति में सोलह व गौतम धर्मसूत्र में चालीस संस्कारों का उल्लेख मिलता है। मनु एवं याज्ञवल्क्यस्मृति में वर्णित दैहिक संस्कारों के साथ ही इनमें पाकयज्ञों की भी गणना की गई है। जबकि श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में वर्णित संस्कारों के स्वरूप आदि में विशेष अन्तर नहीं है, यद्यपि अपनी-अपनी परम्परागत मान्यता के कारण कुछ अन्तर अवश्य है। जहाँ 15वीं शताब्दी के साहित्य आचारदिनकर में इनकी संख्या चालीस बतायी गई है. वहीं आदिपुराण में इनकी संख्या सौ से भी अधिक बतायी गई है। आदिपुराण में संस्कार शब्द क्रिया के रूप में प्रयुक्त हुआ है किन्तु वे संस्कार ही माने गए हैं। आदिपुराण में वर्णित तीन प्रकार की क्रियाएँ व उनकी संख्या इस प्रकार बतायी गई है, यथा- 1. गर्भान्वय क्रियाएँ. 2. दीक्षान्वय क्रियाएँ, तथा 3. कन्वय क्रियाएँ। प्रो. भागचन्द्र जैन का मत है कि पश्चाद्वर्ती कालों में वैदिक संस्कृति में मान्य संस्कारों का जैनीकरण कर लिया गया।' ध्यातव्य है कि अंग साहित्य में मुनि निमित्त संस्कारों को संस्कार न कहकर विधि-विधान कहा गया तथा गर्भाधान, जातकर्म, नामकरण आदि संस्कारों का नामोल्लेख तो मिलता है, किन्तु विधि-विधानों का उल्लेख नहीं मिलता है। (अ) गृहस्थ-संस्कार (ब) मुनि-संस्कार व (स) गृहस्थ व मुनि- उभय हेतु [1] गर्भाधान-संस्कार (1) ब्रह्मचर्यव्रतग्रहण विधि (1) प्रतिष्ठा विधि