SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समवायांगसूत्र में पाठभेदों की प्रमुख प्रवृत्तियाँ : 7 9. संयुक्त व्यंजन के पूर्व दीर्घ के ह्रस्व की वैकल्पिक प्रवृत्ति-प्राकृत में 'हस्वः संयोगे' सूत्र के अनुसार संयुक्त व्यंजन के पूर्व स्थित दीर्घ स्वर को विकल्प से हस्व होता है।विकल्प से हस्व होने के परिणाम स्वरूप दीर्घस्वर का भी प्रयोग होने के कारण प्रायः पाठान्तर प्राप्त होता है- मानुसोत्तर- मानुसुत्तर (ओ- उ)74 वितोसग्गे विओसग्गे- विउसग्गे, विउस्सग्गे (ओ- उ)75 ओसप्पिणीए- उस्सप्पिणीए (ओ- उ)76 वेंट विंट ए-इ आगमेस्साण- आगमिस्साण ए-इ 10. संज्ञाभेद- विभिन्न पाण्डुलिपियों में नाम में भी भिन्नता पायी जाती है। इस कारण पाठभेद महत्त्वपूर्ण हो जाता है, जैसे सुभे (शुभ) य सुभघोसे(शुभघोष) - सुभे(शुभ) सुंभघोसे (शुभघोष)" वज्जज्झयं(वज्रध्वजम्)- वज्जरुयं(वज्ररुचं) भरहे(भरत)- भारहे (भारत) समुद्ददत्तइसिवाले (समुद्रदत्त रिषिपाल)- समुद्ददत्त य सेवाल (समुद्रदत्त और शैवाल )2, सोमचंद(सोमचंद्र)- सामचंद(श्यामचन्द्र)3 देवसेणं (देवसेन)- देवसम्म(देवशर्म)84 11. सन्धि के वैकल्पिक होने के कारण पाठभेद-प्राकृत में दो पदों में सन्धि यां बहुल अधिकार या व्यवस्थित विभाषा से की जाती हैं। व्यवस्थित-विभाषा पद का अर्थ है- किसी प्रयोग में सूत्र का नित्य प्रवृत्त होना, किसी में न प्रवृत्त होना, किसी में विकल्प से प्रवृत्त होना- पदयोः सन्धिर्वा, संति एगतिया- संतेगतिया भरहे एरवए- भरहेरवते7 हेमवय एरण्ण- हेमवतेरण्ण xx प्राकृत में विभाषा या बहुल अधिकार के नियमों के अनुसार कहीं-कहीं एक पद में भी विकल्प से सन्धि हो जाती हैबेइंदिया- बेंदिया , बेइदिय- बेंदिय" तेइंदिया- तेंदिया , बितीए- बीए, बितियातो- बीयाओ" तवइंसु- तविंसु,
SR No.525080
Book TitleSramana 2012 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy