SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 2 / अप्रैल-जून 2012 12. प्राकृत में समान विभक्ति और वचन के रूपों की बहुलता - प्राकृत में एक विभक्ति और वचन में कई-कई रूप होते हैं । पाण्डुलिपियों में अलग-अलग रूपों के लिखे होने के कारण भी पाठ-भेद मिलते हैं - उदाहरण के लिए सत्तमीसु - सत्तमीए°5 प्राकृत में विकल्प से अव्यय पदों तथा उत्खात आदि शब्दों के आदिम आकार को अकार होता है- वाव्ययोत्खातावदातः 8.1.67%। प्राकृत की इस विशेषता के कारण भी कुछ पाठ-भेद प्राप्त होते हैं, जैसेअदुवा (अथवा)- अदुव” 13. वर्णों की आकृतिगत समानता - कुछ वर्णों की आकृति में समानता होने से लिपिकार भ्रमवश सही वर्ण के स्थान पर उससे मिलता-जुलता अन्य वर्ण लिख देता है जेसे ग-ठ,ग-व, स-त, भ-म आदि, जो पाठ-भेद का कारण बनता है, जैसे, होक्खति- होक्कति , गणाई- ठाणाई” उग्घातिया- उवघातिया , अणुग्घातिया- अणुवघातिया', कज्जसेणे- कक्कसेणे 02 , अट्ठत्तीसइभाग- अट्ठवीसइभागं 103, भणियव्वा- भतियव्वा'04, तित्थप्पवत्तयाण- तित्थणिवत्तयाण"5. पभास- पभात/06 , अभियंदे(अभिचंदे)-अमियदे107, भेयाय-भेयाण108 केउभूयं- केउच्चयं, सुव्वय(सुव्रत)सुज्जय- सुव्वते,सुज्जते, सुज्जोय, भोए- लोए'' पृ. 119, 14. अज्ञानतावश त्रुटिपूर्ण लेखन- किसी-किसी हस्तप्रत का लिपिकर्ता विषय से अज्ञात होने के कारण सामान्यबुद्धि से त्रुटिपूर्ण वर्ण या शब्द लिख देता है जिसके कारण भी पाठ-भेद हो जाता है- , विसुत(विश्रुतदेव)- विस्मृतं (खं),विस्तृतं , विसुतं 12 अंतरे(अन्तराल)- अंतंकरे।।3 अबाहाए (व्यवधानरहित)- अवहाते 13, पोरेक्कव्वं- पोक्खच्चा , खहयर- खहय।।5 मंदर(पर्वत)-मंदिर।।6 , विमल-विम्हल'' , सिद्धावत्तं सिद्धायुद्धं, सिद्धावद्धं, सिद्धावह, सिद्धवद्धं ॥ आसोत्थे (अष्ठवत्थ)-आसेठे खं, आसेट्ठी हे। ला 2, आसित्थे हे 2, आसत्था अंबगरुक्खे, अंबरुक्खे- अवरुक्खे हे 1 ला 2, अवंगरुक्खे जे.1,120
SR No.525080
Book TitleSramana 2012 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy