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________________ ६४ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - २०११ संक्रमण है। इसके चार प्रकार हैं- प्रकृति संक्रमण, स्थिति संक्रमण, अनुभाग संक्रमण तथा प्रदेश संक्रमण । १८ प्रकृति - संक्रमण में पहले बँधी हुई कर्म प्रकृति वर्तमान में बँधने वाली प्रकृति के रूप में बदल जाती है । २९ परन्तु यह संक्रमण किसी एक मूल प्रकृति की उत्तर प्रकृतियों में ही होती है, विभिन्न मूल प्रकृतियों में नहीं। परन्तु आयुष्य कर्म की चारों प्रकृतियों में संक्रमण नहीं हो सकता। जैसे देवायु का संक्रमण मनुष्य अथवा तिर्यञ्च आयु में नहीं हो सकता। इसी प्रकार स्थिति, अनुभाव और प्रदेश का परिवर्तन होता है। ज्ञातव्य है कि उदीरणा, अपवर्तना, उद्वर्तना, तथा संक्रमण ये सभी उदयावलिका के बहिस्थित कर्म पुद्गलों के ही होते हैं। उदयावलिका में प्रविष्ट कर्म पुद्गल के उदय में कोई परिवर्तन नहीं होता है । ३ ८- उपशमन- कर्म की जिस अवस्था में उदय अथवा उदीरणा सम्भव नहीं होती, उसे उपशमन कहते हैं । ३४ कर्म को भस्माच्छन्न अग्नि की भाँति यदि दबा दिया जाये तो वह उपशमन है। ३५ इस अवस्था में उद्वर्तना, अपवर्तना और संक्रमण की सम्भावना बनी रहती है । उपशमन केवल मोहनीय कर्म का होता है।३६ ९ - निधत्ति - कर्म की उदीरणा और संक्रमण के अभाव की स्थिति को नित्ति कहते हैं। इस स्थिति में उद्वर्तना तथा अपवर्तना की सम्भावना रहती है । ३७ १०- निकाचना- आग में तपाकर निकाली गई सूइयों को घन से कूटने पर जैसे वे एकाकार हो जाती हैं उसी प्रकार कर्मपुद्गलों के आत्मा के साथ अत्यन्त प्रगाढ़ सम्बन्ध हो जाने को निकाचना या निकाचित बन्ध कहते हैं। इस अवस्था में कर्म का जिस रूप में बन्ध होता है, उसी रूप में उसे अनिवार्यतः भोगना ही पड़ता है। ३८ कुछ विज्ञों के मतानुसार यह कर्मवाद भी इच्छा - स्वातन्त्र्य का हनन करने वाला है। उनका मानना है कि कर्मवाद का सिद्धान्त इस परिकल्पना पर आधारित है कि प्रत्येक क्रिया (कारण) आवश्यक रूप से परिणामों (कार्यों) को उत्पन्न करने वाली है४• तथा जीव की वर्तमान अवस्था उसके पूर्व जन्म के कर्मों का परिणाम है तथा आज किये जाने वाले कर्म अगले जीवन का कारण बनेंगे। यह कारण कार्य शृंखला यंत्रवत् चलती रहती है। इसके लिये किसी सक्रिय अथवा किसी स्वैच्छिक उद्यम की आवश्यकता नहीं होती । अतः इस प्रकार से यह
SR No.525077
Book TitleSramana 2011 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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