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को समाप्त करने का संकल्प लेकर अन्ना हजारे ने संसद में जन लोकपाल बिल पास कराने का जो अन्दोलन छेड़ा है वह स्वागत के योग्य है । यहाँ ध्यान देने की एक बात यह भी है कि अन्ना हजारे ने माँगें मान ली जाने तथा विशाल जनसमुदाय के उपस्थित रहने पर भी अपने अनशन को रात्रि के समय न तोड़ते हुए दिन में तोड़ा जो उनकी जैनवृत्ति में आस्था को प्रकट करती है। यदि अन्ना हजारे जैनसिद्धान्तों (अनेकान्तवाद, अपरिग्रहवाद, स्याद्वाद, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य) के साथ चलेंगे तो निश्चय ही इस देश से क्या समस्त संसार से भ्रष्टाचार को समाप्त कर सकेंगे। आज आवश्यकता उन जैन सिद्धान्तों को प्रयोग में लाने की है। उनको कैसे प्रयोग में लाया जाए ? इस पर मंथन आवश्यक है।
यह सत्य है कि पूर्ण अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य, अचौर्य और ब्रह्मचर्य का पालन न तो सम्भव है और न एक गृहस्थ के लिए आवश्यक क्योंकि उसे कई आरम्भिक, औद्योगिक आदि क्रियायें करनी पड़ती हैं। अतः उसे अणुव्रती होकर सीमित-परिग्रही तथा स्वपत्नी संतोषव्रती होना चाहिए। मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए पञ्चेन्द्रियों की न तो हत्या करनी चाहिए और न उन्हें सताना चाहिए । चोरी करके तथा असत्य बोलकर किसी को न तो कष्ट देना चाहिए और न उन्हें सताना चाहिए। इस आध्यात्मिक मधु - बिन्दु दृष्टान्त को वर्तमान परिवेश में सोचेंगे तो पता चलेगा कि गलत कार्यों के करने पर हमें राजकीय और सामाजिक दण्ड भोगने होंगे। यह मध्य - बिन्दु दृष्टान्त यदि जनसमुदाय को समझ में आ जाएगा और वह यदि विमानस्थ देव के अपरिग्रह, अहिंसा आदि वचनों का अनुसरण करेगा तो निश्चय ही भ्रष्टाचार- समाप्ति के साथ सुख-शान्ति का साम्राज्य व्याप्त हो जाएगा।
इस अङ्क की विशेषता है कि अधिकतर लेख पार्श्वनाथ विद्यापीठ में कार्यरत विद्वानों द्वारा लिखे गए हैं। इसके गुण-दोष की परीक्षा आप सुधी पाठकों द्वारा प्राप्त करना हमारा उद्देश्य है।
आगामी दशहरा और दीपावली के पावन त्योहारों पर पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिवार की ओर से आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।
प्रो० सुदर्शन लाल जैन