SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिज्ञासा और समाधान : ९१ कर्नाटक में इस महान् तार्किक की रचनाएँ हैं- आप्तमीमांसा, रत्नकरण्डश्रावकाचार, स्वयम्भूस्तोत्र, युक्त्यनुशासन, जिनस्तुति आदि। ये दिगम्बर जैन साहित्य के युग-प्रवर्तक के रूप में जाने जाते हैं। ४. पूज्यपाद (देवनन्दि या जिनेन्द्रबुद्धि, वि० ६-७ शताब्दी)- ये निष्णात वैयाकरण थे। इनकी रचनाएँ हैं- जैनेन्द्रव्याकरण, सर्वार्थसिद्धि (तत्त्वार्थसूत्र टीका), समाधितन्त्र, इष्टोपदेश तथा दशभक्ति। ५. अकलङ्कदेव (८वीं शताब्दी)- ये महान् तर्कशास्त्री थे। इन्हें जैनन्याय का पिता कहा जाता है। आपकी रचनाएँ हैं- तत्त्वार्थराजवार्तिक या राजवार्तिक (तत्त्वार्थसूत्र की वृत्ति), अष्टशती (आप्तमीमांसा-टीका), लघीयस्त्रय, न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय और प्रमाणसंग्रह। इनके ग्रन्थों पर विद्यानंद, अनन्तवीर्य तथा प्रभाचन्द्र ने संस्कृत में टीकाएँ लिखी हैं। ६. विद्यानन्दाचार्य (ई० ८१०-८१६ के आसपास)- इनका अष्टसहस्री नामक न्यायग्रन्थ आप्तमीमांसा तथा उसकी टीका अष्टशतीभाष्य का विद्वत्तापूर्ण महाभाष्य है। तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक (तत्त्वार्थसूत्र की टीका), आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा और विद्यानन्द महोदय भी आपके लिखे ग्रन्थ हैं। ७. प्रभाचन्द्राचार्य- ये धारा के राजा भोज के समकालीन थे। इनके दो महान् टीकाग्रन्थ हैं-न्यायकुमुदचन्द्र (अकलङ्क के लघीयस्त्रय की टीका), प्रमेयकमलमार्तण्ड (माणिक्यनन्दि के परीक्षामुखसूत्र की टीका)। ८. शाकटायन (पाल्यकीर्ति अमोघवर्ष प्रथम के समकालीन)- आपकी रचना है अमोघवृत्ति सहित शाकटायन व्याकरण। ९-११. वीरसेन, जिनसेन एवं गुणभद्र (अमोघवर्ष प्रथम के राज्यकाल में)वीरसेन स्वामी ने भूतबलि-पुष्पदन्त रचित षट्खण्डागमसूत्र पर धवला टीका तथा गुणधराचार्य रचित कसायपाहुड पर जयधवला टीका संस्कृत-प्राकृत मिश्रित भाषा में लिखीं। जयधवला टीका पूर्ण करने के पहले ही ये जब स्वर्गवासी हो गए तो इनके शिष्य जिनसेन स्वामी ने उसे पूरा किया। जिनसेनाचार्य ने कालिदास के मेघदूत को माध्यम बनाकर पार्थाभ्युदय नामक खण्डकाव्य भी रचा। त्रेषठशलाकापुरुषचरित लिखने की इच्छा से महापुराण को लिखना प्रारम्भ किया परन्तु शरीरान्त हो जाने से वे उसे पूरा नहीं कर सके जिसे उनके शिष्य गुणभद्र ने पूरा किया। १२. जिनसेन द्वितीय (ई० ७८३)- इन्होंने हरिवंशपुराण लिखा है।
SR No.525076
Book TitleSramana 2011 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy