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________________ ९२ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक २ / अप्रैल-जून-२०११ १३. सोमदेव (ई० ९५९)- इनकी दो रचनाएँ हैं- यशस्तिलक चम्पू (इसके अन्तिम भाग का नाम है उपासकाध्ययन) तथा नीति वाक्यामृतम् (कौटिल्य के अर्थशास्त्र की शैली में लिखित)। ये सभी ग्रन्थ प्राकृत भाषा अथवा संस्कृत में लिखे गए हैं। अन्य रचनाएँ- ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों से लेकर १२वीं शताब्दी तक दक्षिण के जैनों ने कन्नड भाषा में विपुल रचनाएँ की हैं। जैन कन्नड स्त्रियों ने भी कन्नड में साहित्य लिखकर महनीय योगदान किया है जिनमें 'कान्ति' नाम की कन्नड लेखिका ने अभिनव पम्प की अपूर्ण कविता को पूर्ण किया था। १०वीं शताब्दी में प्रसिद्ध पम्प ने आदिपुराण तथा विक्रमार्जुनविजय ग्रन्थ लिखे। पोन्न कवि ने शान्तिपुराण तथा भुवनैकरामाभ्युदय ग्रन्थ लिखे। रन कवि ने अजितपुराण तथा साहसभीमविजय या गदायुद्ध लिखे। चामुण्डराय ने त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण लिखा। इसके अतिरिक्त कन्नड जैन गन्थकारों ने गणित, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष, पशुचिकित्सा आदि पर भी साहित्य लिखा। श्रीनरसिंहाचार्य ने अपने कन्नड कविचरिते में लिखा है कि कन्नड भाषा के २८० कवियों में से सर्वाधिक ९५ कवि जैन थे। तमिल, तेलगु और मराठी साहित्य पर जैनों का प्रभाव कनड की तरह ज्यादा प्रभावक नहीं रहा। आज पूरे विश्व में जैनधर्म प्रभावक हो रहा है। दक्षिण में जैनधर्म की विशेष जानकारी के लिए देखें- जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग-७ (पार्श्वनाथ विद्यापीठ), दक्षिण भारत में जैनधर्म (पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ), जैनिज्म इन साउथ इण्डिया, जर्नल आफ बिहार-उड़ीसा रिसर्च सोसायटी, जिल्द ३ आदि। प्रो० सुदर्शन लाल जैन
SR No.525076
Book TitleSramana 2011 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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