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सम्पादकीय :ix
पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार, नियमसार आदि ग्रन्थों के आधार पर लेखिका ने यह दर्शाने का प्रयास किया है कि काल एक अनस्तिकाय द्रव्य है तथा वह अणुरूप है। काल का भौतिक शरीर नहीं होता क्योंकि वह मात्र एक प्रदेशवाला है। काल अनन्त कालाणुओं के रूप में समस्त लोक में व्याप्त है। निश्चय काल और व्यवहार काल ये काल के दो भेद हैं। सभी द्रव्यों के परिवर्तन का कारण होने के कारण काल की विस्तृत व्याख्या भारतीय दर्शनों में की गयी है। न्याय-वैशेषिक आदि दर्शन काल को ईश्वर, आकाश तथा अन्य अपरिवर्तित रहने वाले द्रव्यों से समीकृत करते हैं किन्तु जैन दर्शन सभी द्रव्यों में एक औपचारिक अन्तःसम्बन्ध मानता है चाहे वह आत्मा हो या पुद्गलादि । जैन दर्शन मानता है कि सत्तामूलक धरातल पर सभी स्थिति और परिवर्तन के प्रत्ययों से युक्त हैं। अन्य भारतीय दर्शनों से यह जैन दर्शन की एक अलग विशेषता है। ३. उपोसथ और पोसह : जैन एवं बौद्ध दर्शन के प्रारम्भिक इतिहास
के परिप्रेक्ष्य में प्रोफेसर क्रिस्चियन हेस्केट ने जैन एवं बौद्ध आचार दर्शन में उपोसथ एवं पोसह के सिद्धान्त को उनके प्रारम्भिक इतिहास के आलोक में व्याख्यायित किया है। ये दोनों शब्द जैन एवं बौद्ध आचार में अनशन या उपवास के अर्थ में प्रयुक्त हैं जिन्हें कर्मों की निर्जरा का एक साधन माना गया है। उपोसथ और पोसह के सिद्धान्त का विकास इस बात के द्योतक हैं कि ब्राह्मण संस्कृति और श्रमण संस्कृति दोनों संस्कृतियां एक दूसरे से स्वतन्त्र रूप से विकसित हुईं किन्तु कुछ ऐसे पद हैं जिनका प्रयोग दोनों परम्पराओं में लगभग समान अर्थों में हुआ है। वैदिक परम्परा में उपोसथ के लिये 'उपवसथ' शब्द का उल्लेख मिलता है, वैदिक जिसका प्रयोग अनशन व्रत के रूप में सोमयज्ञ की तैयारी के समय करते थे। किन्तु जैन उपोसथ और बौद्ध पोसह इस उपवसथ का ही विकसित रूप है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। एक तो उपवसथ पूरे दिन के लिये रखा जाता है दूसरे उसमें कुछ वर्जनायें होती हैं किन्तु जैन उपोसथ और बौद्ध पोसह किसी यज्ञ या अनुष्ठान की तैयारी हेतु नहीं किये जाते हैं। सम्राट अशोक के समय में पोसह और उपोसथ व्रत किये जाने के उल्लेख मिलते हैं। अतः ये दोनों क्रमश: जैन एवं बौद्ध धर्म से सम्बन्धित नहीं हैं, यह मानने के लिये कोई अवकाश नहीं रह जाता। लेखक ने स्कोन्थल के विचारों का उल्लेख करते हुए यह सम्भावना जताई है कि यदि उपोसथ पोसह से उद्भूत है, ऐसा माना जाये तो पोसह के भी उपवसथ से उद्भूत होने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। वस्तुतः कौन किससे विकसित है, निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता है।