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८ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर - १०
के अनुच्छेदों को उल्लास के स्थान पर अध्याय नाम दे सकते थे जबकि वे वैयाकरणवंश में पैदा हुए थे। यद्यपि वे उत्पन्न हुए थे कश्मीर की उर्वर कल्पना की भूमि में तथापि यह प्रसिद्ध ही है कि उनकी काव्यनिर्माणशक्ति लगभग दुर्बल थी, जबकि आचार्य हेमचन्द्र का संस्कृत भाषा का काव्यलेखन भी अद्वितीय था, जैसा कि उनकी अमर कृति 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम्' से स्पष्ट है, जिसमें लेखन का 'पाक' नामक गुण भी अत्यन्त प्रौढ़ि के साथ उपलब्ध है। काव्यनिर्माणशक्ति आचार्य अभिनवगुप्त में भी इतनी अच्छी थी कि वे काव्यकला में सुमेरुशृङ्ग का स्थान पाने योग्य अपने युग का पूर्ण और सही प्रतिनिधित्व करते थे, तथापि वे कोई स्वतन्त्र काव्यकृति नहीं दे पाए। इस अवसर पर मैं जैन सन्तों का स्मरण अतीव आदर के साथ करना चाहूंगा जिन्होंने प्राचीन ग्रन्थों की प्रतिलिपि को धर्मानुष्ठान का स्वरूप दिया और उस समय भी अपने विशाल वाङ्मय को बचाए रखा, उस समय मुद्रण कला का विकास नहीं था । कालिदास - साहित्य के क्षेत्र में मेरा अनुभव यह है कि कालिदास - साहित्य पर लिखी गई जैन टीका-विषयक जैन- परम्परा भी अनेक स्थानों पर महत्त्वपूर्ण है।
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साहित्यशास्त्र ही नहीं आचार्य हेमचन्द्र का साहित्यिक अवदान अन्य और छूटे शास्त्रों तथा अस्पृष्ट विषयों तक व्यापक है। मैं तो केवल दो ही क्षेत्रों में सिमटा रहा — एक संस्कृत काव्यशास्त्र और दूसरा कालिदास साहित्य | इन दोनों में मेरी जो उपलब्धियाँ हैं उनसे मैं स्वयं को कृतकृत्य मानता हूँ। कालिदास साहित्य से मैंने अकालिदासीय साहित्य छाँट दिया है और कालिदास का मूलपाठ भी लगभग असंगतियों से मुक्त और सुसिद्धान्तित कर लिया है। काव्यशास्त्र में मुझ पर ही माता सरस्वती की कृपा हुई कि मुझे ही सर्वसमन्वयी महावाक्य ‘अलं ब्रह्म’ प्राप्त हुआ। चमत्कार या आनन्द ही जब काव्य का उपेय है तब काव्य का भी वही गन्तव्य ठहरता है जो दर्शन का है, क्योंकि आनन्द एकमात्र ब्रह्म ही होता है। यह ऐसी उपलब्धि है जिसमें हम विचार के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी एकरूपता और अस्मिता बचाए मिलते हैं। इस विशेषता के साथ कि दर्शन तो हमें केवल आनन्द का मार्ग दिखलाता है, जबकि साहित्य हमें सीधे आनन्द के सुधासागर में निमग्न कर देता है। रही बात क्षणिकता की तो उसका कोई परिताप नहीं 'वरमद्यकपोतः श्वोमयूरात्' न्याय से। मुझे 'संस्कृत काव्यशास्त्र का आलोचनात्मक इतिहास' भी लिखना पड़ा है और मैं समझता हूँ कि मेरी चतुर्धाम एवं कल्पपञ्चक स्थापना भी वैज्ञानिक