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________________ वैदिक व श्रमण परम्परा में समान धार्मिक क्रियायें : ५१ बौद्धों में भी तथागत के जन्मस्थान, ज्ञानप्राप्ति, धर्मचक्र प्रवर्तन और निर्वाण इन चार घटनाओं से सम्बन्धित स्थान को पवित्र मान इनकी यात्रा को महत्त्व प्रदान किया गया है। सुधाभोजन जातक' में तीर्थस्थल के रूप में बाहुका, गया, तिम्बरू का उल्लेख है। भूरिदत्त जातक में पाप-प्रक्षालन तीर्थ के रूप में प्रयाग का उल्लेख है। यहाँ का जल पापनाशक के रूप में प्रख्यात था।' धार्मिक क्रिया का दूसरा मुख्य अंग व्रत है। वैदिक एवं श्रमण दोनों परम्पराओं में अनिष्टकारी शक्ति से व्रत किया जाता है। व्रत धार्मिक संकल्प के रूप में ग्राह्य है अर्थात् किसी तिथि, सप्ताह, दिन या मास में एक मानसिक प्रतिज्ञा की जाती है जिसमें व्यक्ति को भोजन-सम्बन्धी या आचरण सम्बन्धी कुछ निषेधों का पालन करना पड़ता है। वैदिक संहिता में आचरण से सम्बन्धित नैतिक-विधियों के अर्थ में व्रत आया है। पूर्णमासी के उपरान्त आठवें दिन अष्टमी को व्रत तिथि कहा गया है। आपस्तम्ब धर्मसूत्र में उल्लेख है कि अमावस्या की रात्रि में चन्द्र, सूर्य के साथ रहता है इसलिए इसे दर्श भी कहा गया है। अग्निपुराण में व्रत के दस गुणों का वर्णन किया गया है। पुराणों में उल्लेख है कि कामदेव, यक्ष, शिव के लिए क्रमश: त्रयोदश, चतुदर्शी, पूर्णिमा के दिन व्रत सम्पादन होता था। एकादशी व्रत की मान्यता सर्वाधिक है और इस सम्बन्ध में प्रचलित है कि एकादशी व्रत से उत्पन्न अग्नि से सहस्रों जीवन में किये गये पापों का इंधन जलकर भस्म हो जाता है। अश्वमेध एवं वाजपेय जैसे सहस्रों यज्ञ एकादशी व्रत के सोलहवें अंश तक भी नहीं पहुँच सकते। एकादशी स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदायक है। एकादशी की रात्रि से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चातुर्मास्य व्रत की स्थापना की जाती है। इस समय व्रती को शय्या, शयन, मांस, मधु आदि का त्याग करना पड़ता है। जैन साहित्य में पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी को उपवास का दिन बताया गया है। व्रत को पोषधोपवास या पोसहसाल कहा गया है।१५ उपासकाध्ययन में कहा गया है कि व्रत के दिन विशेष पूजा करके व्रत का आचरण कर धर्म कर्म को बढ़ाना चाहिए। इसके पूर्व के दिनों में रस का त्याग, एकाशन या उपवास, एकान्त-निवास, करना चाहिए।१६ लोग अपने आध्यात्मिक विकास के लिए प्रत्येक अष्टमी, चतुर्दशी पूर्णमासी के दिन उपवास करते थे एवं संध्या को पौषध ग्रहण करते थे। मज्झिमनिकाय,१८ अंगुत्तरनिकाय?
SR No.525074
Book TitleSramana 2010 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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