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________________ ३० : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर-१० पुद्गल द्रव्य के सन्दर्भ में वाचक का वैशिष्ट्य यही है कि उन्होंने द्रव्यों का साधर्म्य-वैधर्म्य बताते हुए पुद्गल को “रूपिणः पुद्गलाः" कहा है जो दूसरे द्रव्यों से पुद्गल का वैधर्म्य बताता है। यह पुद्गल का सबसे संक्षिप्त लक्षण है। काल जहाँ तक काल द्रव्य का प्रश्न है जैन आगमों में काल को स्वतन्त्र द्रव्य के रूप में स्वीकार किया गया है। यह परम्परा श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों में ही देखने को मिलती है। इसलिए जहाँ लोक की परिभाषा की गई है वहाँ लोक को पंचास्तिकायमय कहा गया है। प्राचीन समय में भी काल को द्रव्य तो माना ही जाता था परन्तु उसका स्वरूप ज्यादा स्पष्ट नहीं था। अतः आगे चलकर उमास्वाति ने "कालश्च' सूत्र बनाकर लोक को षद्रव्यात्मक रूप में स्थापित किया। प्रमाण और ज्ञान विमर्श प्रमाण-निरूपण के सन्दर्भ मे वाचक की नई सूझ दिखाई देती है। जैन आगमों में पाँच ज्ञानों की स्पष्ट रूप से चर्चा है साथ ही उन्हें प्रत्यक्ष और परोक्ष ऐसे दो प्रकारों में विभाजित भी किया गया है। उस समय विभिन्न दर्शनों में प्रमाण के तीन, चार और पाँच भेद प्रचलित थे। उसी के आधार पर जैन आगमों में तीन या चार प्रकार की प्रमाण-व्यवस्था बताई गई है। किन्तु वाचक ने इन दोनों का समन्वय कर दिया और मति आदि पाँचों ज्ञानों को ही प्रमाण. कह दिया।११ इस प्रकार वाचक ने आगम में आगत ज्ञान के प्रत्यक्ष और परोक्ष दो भेदों को ध्यान में रखकर प्रमाण के भी दो भेद कर दिए और आगमों में उल्लिखित लोकानुसारी प्रमाण-व्यवस्था को न छोड़ते हुए अपनी सूझ से प्रमाण और पंचज्ञान का समन्वय सिद्ध किया। नय __अनुयोगद्वार के अन्तर्गत तत्त्व के अभिगम (ज्ञान) के लिए चार मूल द्वार-उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय बतलाए हैं। यहाँ प्रमाण को उपक्रम के प्रभेद के रूप में स्वीकार किया गया है स्वतंत्र रूप से नहीं। दार्शनिक युग में प्रमाण को स्वतंत्र रूप से तत्त्व अभिगम में स्थान दिया गया। लगता है यह उमास्वाति का ही प्रभाव है क्योंकि सर्वप्रथम उन्होंने ही कहा'प्रमाणनयैरधिगमः"। हालांकि तात्त्विक दृष्टि से दोनों में कोई भेद नहीं था किन्तु वस्तु के सकल एवं विकल या सम्पूर्ण एवं आंशिक ज्ञान के आधार पर दोनों का पृथक् रूप ग्रहण किया गया। प्रमाण-जो अखण्ड वस्तु का
SR No.525074
Book TitleSramana 2010 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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