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________________ २६ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर-१० (३२/४५) हैं। पं. जुगलकिशोर मुख्तार, पं. परमानन्द शास्त्री, पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, नेमिचन्द्र शास्त्री, पं. फूलचन्द्रजी आदि ने स्वीकार किया है कि तत्त्वार्थ के मूल आधार दिगम्बर आगम हैं। उक्त तथ्य के आधार पर हमें यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि आगमों में दार्शनिक विवरण तो था ही किन्तु वे व्यवस्थित रूप में नहीं थे। उन्हें व्यवस्थित करने का सर्वप्रथम प्रयास उमास्वाति द्वारा किया गया। अब हमारे सामने प्रश्न यह है कि उमास्वाति ने आगमों से संग्रहण किस रूप में किया तथा कैसे किया। इस पर यही कहा जा सकता है कि कहीं तो शब्दश: संग्रह है, अर्थात् आगम सूत्रों के भाव (अर्थ) को ध्यान में रखकर तत्त्वार्थसूत्र की रचना की गई है। कहीं-कहीं पर विस्तृत विषयों का संक्षिप्तीकरण किया गया है। इस विषय में पूर्व में कहीं विस्तृत तो कहीं संक्षिप्त रूप में कहा जा चुका है। फिर भी प्रसंगानुकूल होने के कारण कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रही हूँ तत्त्वार्थ का वर्ण्य-विषय दस अध्यायों में विभाजित है पहले अध्याय में ज्ञान से सम्बन्धित चर्चा है तथा पदार्थ निरूपण के सन्दर्भ में सात पदार्थों का उल्लेख प्राप्त होता है"जीवाजीवास्रवबंधसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम्' (१.४) अर्थात् जीव, अजीव आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व कहे गये हैं। जैसा कि स्थानांगसूत्र में कहा गया है-"नव सम्भावपयत्था पण्णत्ता, तं जहा-जीवा अजीवा पुण्णं पावं आसवो संवरो णिज्जरा बंधो मोक्खो' (९.६) यहाँ पर विशेष बात यही है कि जहाँ स्थानांगसूत्र में पुण्य-पाप की अलग गणना की गई है वहीं तत्त्वार्थ में पुण्य-पाप को बंध के अन्तर्गत लिया गया है। इसी तरह तत्त्वार्थ के प्रथम अध्याय में ही ज्ञान के सन्दर्भ में 'मतिश्रुतावधिमनःपर्यायकेवलानि ज्ञानम्" (१.९) ये पाँच भेद प्राप्त होते हैं जो कि स्थानांग, भगवती, अनुयोगद्वार एवं नंदीसूत्र में आगत ज्ञान के प्रकार-पंचविहे णाणे पण्णत्ते, तं जहाअभिणिबोहियणाणे सुयणाणे ओहिणाणे मणपज्जवणाणे केवलणाणे' का ही संक्षिप्तीकरण है। अन्तर इतना ही है कि आभिनिबोधिक को मतिज्ञान कहा है। दूसरे से पाँचवें तक चार अध्यायों में ज्ञेय तत्त्व की मीमांसा है- तत्त्वार्थ में ज्ञेय तत्त्व में जीव की मीमांसा के सन्दर्भ में जीव की परिभाषा "उपयोगो लक्षणम्' (२.८) कही है, जो भगवती के "उवओग-लक्खणे जीवे"
SR No.525074
Book TitleSramana 2010 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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