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________________ १८ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - १० के कुछ विश्वविद्यालयों में प्राकृत और दर्शन विभागों में जैन विद्या से सम्बन्धित कुछ शोध- कार्य अवश्य हुए हैं और वर्तमान में भी हो रहे हैं किन्तु वहाँ के शोध कार्यों का स्तर विचारणीय है। वाराणसी में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्याल में प्राकृत एवं जैन आगम और जैन दर्शन के, स्वतन्त्र विभाग हैं किन्तु यहाँ भी शोध की दृष्टि से जैन विद्या के गम्भीर अध्येताओं की स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसी प्रकार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्मविज्ञान संकाय के अन्तर्गत जैन एवं बौद्ध दर्शन का संयुक्त विभाग है, लेकिन यहाँ भी अध्येता एवं शोधार्थियों की स्थिति प्रायः नगण्य है। यहाँ पंडित सुखलाल जी, पं० दलसुख भाई, पं० दरबारीलाल कोठिया जैसे जैन व्यक्तित्व रहे हैं। यहीं कला संकाय में संस्कृत, कल्चर तथा दर्शन विभाग हैं जिनमें भी शोध कार्य हुए हैं। राम मनोहर लोहिया वि०वि०, फैजाबाद में ऋषभदेव शोधपीठ की स्थापना हुयी है किन्तु वहाँ जैन विद्या के अध्ययन एवं शोध की जैसी स्थिति है वह एक चिन्ता का विषय है । जय नारायण व्यास जोधपुर विश्वविद्यालय में भी संस्कृत विभाग में जैन विद्या का अध्ययन हो रहा है। स्वस्ति श्री चारुकीर्ति जी महाराज के सौजन्य से अभी कुछ समय पूर्व बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ की श्रवणबेल गोला (कर्नाटक) में स्थापना हुई है। इससे बड़ी आशाएँ हैं। नागपुर विश्वविद्यालय के पालि- प्राकृत विभाग में पूर्व में प्रो० हीरालाल जी, प्रो० भागचन्द जी जैन आदि विद्वानों ने अनेक स्तरीय कार्य किये किन्तु वर्तमान में यहाँ प्राकृत के छात्रों और शोधार्थियों का प्रायः अभाव ही देखा जा रहा है। इसी प्रकार गुजरात वि०वि० के प्राकृत विभाग में भी पूर्व में कुछ शोध कार्य हुए जिनमें प्रो० के० आर० चन्द्रा का योगदान उल्लेखनीय रहा किन्तु आज उस विभाग में शोध की क्या स्थिति है, यह ज्ञात नहीं है, किन्तु यहाँ अपेक्षायें की जा सकती हैं। इसी प्रकार धारवाड़ के कर्नाटक वि०वि० में जैन विद्या विभाग है किन्तु वह अभी पूर्ण आकार ले पाया हो ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसी क्रम में जयपुर का जैन अनुशीलन केन्द्र डॉ० पी०सी० जैन के नेतृत्व में कार्यरत है। यहाँ से कई शोध छात्र Ph.D. उपाधि प्राप्त कर चुके हैं तथा कुछ अभी भी कर रहे हैं। यहाँ अब प्रो. पी. सी. जैन सेवानिवृत्त हो गए हैं, नई नियुक्ति नहीं हुई है। इसके अतिरिक्त यद्यपि सागर विश्वविद्यालय में जैन विद्या का स्वतन्त्र
SR No.525073
Book TitleSramana 2010 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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