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________________ जैन-विद्या के शोध-अध्ययन तथा शोध केन्द्र :एक समीक्षा : १७ . हस्तप्रतियों के सूचीकरण के कारण इसका नाम है, यहाँ सहयोग की भावना समृद्ध है, किन्तु इन्दौर जैसे जैन समाज बहुल नगर में स्थित होकर भी विगत पन्द्रह वर्षों में इसकी जैसी प्रगति होनी चाहिये वैसी प्रगति हो नहीं पाई है। जहाँ तक महावीर आराधना केन्द्र, कोबा, और भोगीलाल लहेरचंद संस्थान, दिल्ली का प्रश्न है, ये दोनों शोध-सुविधा की दृष्टि से समृद्ध संस्थान हैं- किन्तु जहाँ तक मेरी जानकारी है, इन्हें किसी विश्वविद्यालय से अभी तक शोध केन्द्र के रूप में मान्यता नहीं मिली है। आज कोबा की संस्था हस्तप्रतों एवं पुस्तकालय की अपेक्षा से अति समृद्ध है और शोध-कार्य में सहयोग भी करती है, किन्तु योग्य निदेशक के अभाव में शोध-योजनाएँ गतिशील नहीं हो पा रही हैं। फिर भी वहाँ से हस्तप्रतों के कैटलागों का प्रकाशन महत्त्वपूर्ण है। भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय विद्यामन्दिर से प्रारम्भ में कुछ शोध-पूर्ण प्रकाशन हुए थे, किन्तु यह संस्था भी अभी तक किसी ऐसे निदेशक को नहीं खोज पायी है जो जैन विद्या का गम्भीर अध्येता हो। अतः यह संस्था भी प्राकृत शिक्षण के कुछ प्रयत्नों तक सीमित होकर रह गई है। (३) विश्वविद्यालयों में जैन विद्या के अध्ययन एवं शोध की स्थिति जहाँ तक विश्वविद्यालयों में जैन विद्या के अध्ययन का प्रश्न है तो. प्राकृत एवं जैन विद्या विभाग, उदयपुर, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं में ही ऐसे सक्रिय विभाग हैं जहाँ जैन विद्या से सम्बन्धित शोध-कार्य सन्तोष जनक स्थिति में हैं। पुणे विद्यापीठ के दर्शन विभाग की जैनपीठ वर्तमान में निष्क्रिय सी है। मद्रास विश्वविद्यालय के जैन विद्या विभाग में यद्यपि कुछ शोध-कार्य हुए हैं लेकिन प्रो० खड़बड़ी आदि के जाने के बाद, यहाँ की स्थिति उतनी सन्तोष जनक नहीं रही। दक्षिण भारत के बंगलोर एवं मैसूर विश्वविद्यालयों में भी जैन विद्या से सम्बन्धित कुछ कार्य हुए हैं। वर्तमान में मैसूर विश्वविद्यालय का जैन विद्या विभाग प्रो० हम्पा नागरजैया के मार्गदर्शन में निश्चित ही सन्तोष जनक कार्य कर रहा है, यद्यपि वहाँ शोध-छात्रों की क्या स्थिति है यह मुझे ज्ञात नहीं है। जहाँ तक उत्तर भारत का प्रश्न है पटियाला विश्वविद्यालय की जैनपीठ में पूर्व में कुछ कार्य हुए हैं लेकिन वर्तमान में स्थिति क्या है यह मेरी जानकारी में नहीं है। इसी प्रकार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रो० धर्मचन्द्र जी के अधीन कुछ शोध-कार्य हुए हैं, किन्तु वहाँ जैनपीठ की क्या स्थिति है इस सम्बन्ध में भी विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है। बिहार
SR No.525073
Book TitleSramana 2010 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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