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________________ जैन-विद्या के शोध-अध्ययन तथा शोध केन्द्र :एक समीक्षा : १९ विभाग नहीं है किन्तु वहाँ पर संस्कृत एवं दर्शन विभाग के अन्तर्गत जैन विद्या से सम्बन्धित कुछ शोध कार्य अवश्य हुए हैं। जहाँ तक मुझे डॉ० कपूर चन्द जैन की प्राकृत एवं जैन विद्या शोधसन्दर्भ से जानकारी प्राप्त है इस देश में व विदेशों में लगभग १००० से अधिक जैन विद्या से सम्बन्धित शोध-कार्य हुए हैं। ये सभी स्तरीय हैं, ऐसा तो मैं नहीं कह सकता किन्तु उनमें से अनेक शोध-ग्रन्थ निश्चित ही महत्त्वपूर्ण हैं। एक सुव्यवस्थित केन्द्रीय संस्था के माध्यम से सभी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के प्रकाशन की योजना बनाई जानी चाहिए। (४) शोध ग्रन्थालय शोध संस्थाओं के सबसे महत्त्वपूर्ण साधन पुस्तकालय और हस्तप्रतों के भण्डार होते हैं। देश में आज जैसलमेर, बीकानेर, पाटन, कोबा, अहमदाबाद मूडबिद्री आदि में हस्तप्रतों के अच्छे संग्रह हैं, किन्तु जैसलमेर, पाटण आदि कुछ स्थलों के कैटलागों को छोड़कर अधिकांश स्थलों के कैटलाग भी प्रकाशित नहीं हैं। इनके अतिरिक्त देश में उदयपुर, जयपुर, दिल्ली, उज्जैन आदि में तथा देश के अनेक जैन मंदिरों, स्थानकों एवं निजी संग्रहों में लगभग हस्तप्रतों का अच्छा संग्रह है। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में पच्चीस लाख से अधिक हस्तप्रतें हैं। इनमें अनेक अनुपलब्ध और अज्ञात जैन रचनाएँ उपलब्ध हो सकती हैं, यदि आज व्यापक स्तर पर इनका सर्वेक्षण किया जाए। यद्यपि केन्द्रीय शासन ने कुछ सर्वेक्षण अवश्य करवाये हैं, किन्तु इन सबके आधार पर जैन ग्रन्थों को खोजने, प्रकाशित करने में जैन समाज की कितनी रुचि है, यह विचारणीय है। जैन विद्या के क्षेत्र में शोध-कार्य के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण साधन पुस्तकालय होते हैं। शोध से सम्बन्धित पुस्तकालयों में विश्वविद्यालयों के पुस्तकालय, जैन शोध संस्थानों के पुस्तकालय और कुछ निजी एवं संस्थागत पुस्तकालय उपलब्ध हैं। जहाँ तक विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों का प्रश्न है, उन्हें जैन विद्या के शोध-संदर्भ में समृद्ध पुस्तकालय के रूप में नहीं माना जा सकता है। देश में आजादी के पश्चात् जो अनेक विश्वविद्यालय खुले हैं उनमें भी जैन विद्या से सम्बन्धित ग्रन्थ नगण्यवत् ही हैं। कुछ प्राचीन विश्वविद्यालयों में जिनमें प्राचीन भारतीय इतिहास, प्राकृत और दर्शन के अध्यापन की व्यवस्थाएँ रही हैं, वहाँ के पुस्तकालयों में जैन विद्या से सम्बन्धित कुछ ग्रन्थ अवश्य उपलब्ध हो जाते हैं, किन्तु वर्तमान में विशेष रूप से उत्तर
SR No.525073
Book TitleSramana 2010 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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