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________________ जैन धर्म में शांति की अवधारणा : ५७ व्यावहारिक जीवन में इस आदर्श लक्ष्य को उपलब्ध करना किसी भी तरह सम्भव नहीं है। पूर्ण अहिंसा एक आध्यात्मिक आदर्श है, जिसका क्रियान्वयन केवल आध्यात्मिक तल पर ही सम्भव हो सकता है। एक व्यक्ति का वास्तविक जीवन भौतिक-आध्यात्मिक जीवन का सम्मिश्रण है, अतः इस स्तर पर पूर्ण अहिंसा सम्भव नहीं है। जैन-विचारकों के अनुसार हिंसा चार प्रकार की होती है- (१) संकल्पी या आक्रामक-हिंसा या उद्देश्यपूर्वक मारना (२) विरोधी या रक्षात्मकहिंसा, अर्थात् समाज में शान्ति, न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए या आत्मरक्षा के लिए या दूसरों के जीवन को बचाने के लिए की जाने वाली हिंसा (३) उद्योगजा-हिंसा, अर्थात् खेती करने के दौरान या कारखानों या उद्योगों को संचालित करने में होने वाली सामान्य हिंसा और (४) आरम्भी अर्थात् गृहस्थजीवन के अन्तर्गत नित्यकर्म, जैसे स्नान, भोजन बनाना, टहलना आदि के दौरान होने वाली हिंसा। हिंसा के प्रथम प्रकार, संकल्पी-हिंसा से सभी को दूर रहना चाहिए, क्योंकि यही हमारी मूल-वृत्ति है। जहाँ तक वैचारिक-हिंसा का सम्बन्ध है, प्रत्येक व्यक्ति अपने विचारों का स्वामी होता है, इसलिए इस क्षेत्र में सभी को अहिंसक होने का प्रयास करना चाहिए। यद्यपि बाह्य परिस्थितियाँ इस स्तर पर हमें प्रभावित कर सकती हैं, परन्तु संचालित नहीं कर सकती हैं। व्यावहारिक दृष्टि से संकल्पीहिंसा आक्रामक होती है, इसलिए यह हिंसा न तो आत्मरक्षा के लिए और न ही जीवन जीने के लिए आवश्यक है, अतः सभी को इससे बचना चाहिए। जहाँ तक व्यक्ति के भौतिक-स्तर पर जीवन जीने का संबंध है, हिंसा के अन्य रूप, अर्थात् रक्षात्मक, उद्योगजा आदि अपरिहार्य हैं, परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि अहिंसा का आदर्श व्यावहारिक नहीं होने से मानव जाति के लिए आवश्यक नहीं है। भौतिक जीवन से परे रहकर ही एक व्यक्ति पूर्ण अहिंसा के आदर्श-पथ पर जितना आगे जाना चाहता है, जा सकता है। रक्षात्मक-हिंसा रक्षात्मक-गतिविधियों, अर्थात् जान-माल की हिफाजत करने के लिए आवश्यक होती है। बाह्य-परिस्थितियाँ एक व्यक्ति को आत्मरक्षार्थ या अपने साथीसम्बन्धियों की रक्षा के लिए हथियार उठाने या हिंसक होने के लिए बाध्य करती हैं। ऐसे लोग, जो सत्ता और सम्पत्ति से जुड़े होते हैं और जिन पर दूसरों की रक्षा करने का सामाजिक उत्तरदायित्व होता है, वे रक्षात्मक हिंसा का त्याग करने में असमर्थ होते हैं, क्योंकि वे अपने परिवार के सदस्यों और सगे-सम्बन्धियों की रक्षा करने के लिए वचनबद्ध होते हैं। इसी प्रकार से पुलिस या फौज में
SR No.525072
Book TitleSramana 2010 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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