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४८ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून-१०
जैनधर्म में शान्ति की अवधारणा
'शान्ति' शब्द के विविध अर्थ हैं। यह भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से भिन्न-भिन्न रूप में परिभाषित किया जा सकता है। आभ्यन्तरिक रूप में शान्ति शब्द का अर्थ मन की शान्त-अवस्था से है, जिसमें आत्मा अपने स्वभाव में स्थित हो जाती है, बाह्य वातावरण से अप्रभावित रहती है। 'शान्ति' शब्द का एक अर्थ आत्मा का विकारों-विक्षेपों तथा इच्छाओं-आकांक्षाओं से रहित हो जाना है। आचारांगसूत्र में दृढ़तापूर्वक कहा गया है-'आत्मशान्ति का इच्छुक मुमुक्षु इच्छारहित होता है।" शान्ति, अर्थात् सभी प्रकार की इच्छाओं का अवसान हो जाना। सूत्रकृतांग इसे निर्वाण के समतुल्य मानता है, अर्थात् यह सभी प्रकार की इच्छाओं से मुक्त अवस्था है। अन्य शब्दों में, यह आत्मसन्तोष या विशुद्ध द्रष्टाभाव की अवस्था है। आचारांगसूत्र में निश्चयात्मकतापूर्वक कहा गया है-"जो आत्मशांति के प्रति सजग है, वह मनोविकारों की गिरफ्त से बहुत
दूर है।
शान्ति को परिभाषित करते हुए संत थॉमस एक्विनस भी यही कहते हैं"शान्ति शब्द में दो बातें अन्तर्निहित हैं : प्रथम-आत्मा बाहरी निमित्तों से प्रभावित नहीं होना चाहिए और द्वितीय-हमारी इच्छाएँ उसमें, अर्थात् आत्मा में शान्त हो जानी चाहिए।"६ शान्ति शब्द के इस अर्थ की नकारात्मक और सकारात्मकदृष्टिकोण से भी विवेचना की जा सकती है। नकारात्मक-रूप में यह आत्मा की समस्त प्रकार की इच्छाओं और आवेगों की समाप्ति या राग और द्वेष के मार्ग से मुक्ति की अवस्था है। सकारात्मक-रूप में यह परमानन्द या आत्मसन्तोष की स्थिति है, परन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि आत्मशान्ति के ये सकारात्मक और नकारात्मक पहलू एक-दूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं। आत्मशांति केवल निरपेक्ष भाव नहीं है, अपितु यह ऐसा कुछ है, जो पूर्ण और प्रत्यक्ष है। यह हमारी अनन्त-आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है।
अब हम बाह्यशांति की ओर रुख करते हैं। यदि आभ्यन्तरिक-शान्ति, आत्म-शान्ति है, तो बाह्यशान्ति, सामाजिक-शान्ति है। हम इसे पर्यावरणीय या वातावरणीय-शान्ति के रूप में भी परिभाषित कर सकते हैं। जैनधर्म में प्राकृत शब्द 'संति' संस्कृत के 'शान्ति' शब्द के समान ही है, जिसका आशय भी क्षमाशीलता है। सूत्रकृतांग में दस सद्गुणों में क्षमाशीलता सर्वप्रथम गुण है, जो सामाजिकशान्ति के लिए मूलभूत है। यह विभिन्न व्यक्तियों, व्यक्ति और समाज, विभिन्न सामाजिक-समुदायों और राष्ट्रों के बीच युद्ध, शत्रुता आदि की समाप्ति की स्थिति