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२८ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून-१० है, तो वह जल में कमल की भाँति जगत् में निर्लिप्त रहता है। आगम में वाणी के विवेक पर भी जोर दिया गया। कहा है
हिअ-मिअ-अफरुसवाई, अणुवीइभासि वाइयो विणओ।२४
अर्थात् हित-मित, मृदु और विचारपूर्वक बोलना वाणी का विनय है। इसी प्रकार कहा है
पुव्विं बुद्धीए पासेत्ता, तत्तो वक्कमुदाहरे ।
अचक्खुओ व नेयारं बुद्धिमनेसए गिरा ॥२५
अर्थात् पहले बुद्धि से परख कर फिर बोलना चाहिए। अंधा व्यक्ति जिस प्रकार पथ-प्रदर्शन की अपेक्षा रखता है, उसी प्रकार वाणी बुद्धि की अपेक्षा रखती है। शिक्षा के साधक तत्त्व
नीचे दी हुई पन्द्रह प्रकार की प्रवृत्तियों का सेवन करने वाला व्यक्ति शिक्षा के योग्य कहा गया है- १. जो नम्र होता है, जो चपल नहीं होता, ३. जो मायावी नहीं होता, ४. जो कुतूहल नहीं करता, ५. जो किसी पर आक्षेप नहीं करता, ६. जो क्रोध को टिकाकर नहीं रखता, ७. जो मैत्री करने वाले के साथ मैत्री का व्यवहार करता है, ८. जो मन का मद नहीं करता, ९. स्खलना होने पर किसी का तिरस्कार नहीं करता, १०. मित्रों पर क्रोध नहीं करता, ११. अप्रियता रखने वाले मित्र की भी एकान्त में प्रशंसा करता है, १२. कलह और हाथापाई का वर्जन करता है, १३. कुलीन होता है, १४. लज्जावान होता है, १५. प्रतिसंलीनइन्द्रिय और मन का संगोपन करने वाला होता है।२६ शिक्षा के बाधक तत्त्व
उत्तराध्ययनसूत्र में शिक्षा के बाधक तत्त्वों का भी वर्णन है
अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भई ।
थंभा कोहा पमाएणं रोगेणाऽलस्सएण य ।।२७ निम्न चौदह प्रकार की प्रवृत्तियों का आसेवन करने वाला अविनीत- शिक्षा के अयोग्य कहलाता है। वह निर्वाण-मानसिक शांति को प्राप्त नहीं होता है१. जो बार-बार क्रोध करता है, २. जो क्रोध को टिका कर रखता है, ३. जो मैत्री करने वाले के साथ भी अमैत्रीपूर्ण व्यवहार करता है। ४. जो ज्ञान का मद करता है, ५. किसी की स्खलना होने पर उसका तिरस्कार करता है, ६. मित्रों पर कुपित होता है, ७. प्रियता रखने वाले मित्र की भी एकान्त में बुराई करता है, ८. असम्बद्धभाषी है, ९. द्रोही है, १०. अभिमानी है, ११. लुब्ध है, १२.