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आदर्श और स्वस्थ जीवन जीने की कला : ९
आलोकित किया है। मुझे कभी भी दिग्भ्रान्त होने का अवसर नहीं मिला।"३२
इस प्रकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ द्वारा लिखित साहित्य वर्तमान युग की विकट समस्याओं-तनाव, असंवेदनशीलता, आवेश, आवेग, अवसाद, आतंकवाद, हीनभावना, घृणा, धोखाधड़ी, अनैतिकता, अप्रमाणिकता, अशान्ति आदि के समाधान में एक रामबाण दवाई की तरह कारगर सिद्ध हो रहा है। आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य में प्रयोग व प्रशिक्षण के माध्यम से विभिन्न समस्याओं के समाधान बतलाये गये हैं। आपके साहित्य का गहन अध्ययन करने से दृष्टिकोण की विशुद्धि होती है, आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है तथा जीवन का सर्वांगीण विकास होता है। आपका साहित्य मानव की वर्तमान समस्याओं का समाधान कर मानवता की बहुत बड़ी सेवा कर रहा है। आज का मानव आपके साहित्य के माध्यम से दिए गये अवदानों के लिए चिरऋणी रहेगा। सन्दर्भ-सूची
१. जैन योग- आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. १० २. जीवन विज्ञान-शिक्षा का नया आयाम, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ.६-९ ३. भीतर की ओर, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. ५० ४. अपना दर्पण अपना बिम्ब, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. ३१ ५. भीतर की ओर, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. ५८ ६. उत्तराध्ययनसूत्र, २९/५५ ७. आहार और अध्यात्म-आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. ५४ ८. नया मानव नया विश्व, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. १६० ९. मैं हूँ अपने भाग्य का निर्माता, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ.८६ १०. जैन योग- आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. १५८ ११. मैं हूँ अपने भाग्य का निर्माता, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. ८९ १२. तुम स्वस्थ रह सकते हो, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. ९ १३. एकला चलो रे, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ २१५ १४. जैन योग, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ २१५ १५. ध्यान क्यों?-आचार्य महाप्रज्ञ, पृ ८४ १६. आभामण्डल-आचार्य महाप्रज्ञ, पृ २३९ १७. जैन योग, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ १२३ १८. महावीर की साधना का रहस्य, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ २१५ १९. मैं हूँ अपने भाग्य का निर्माता, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ७२