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जिज्ञासा और समाधान : १०५ में लम्बी मुखपट्टी रखते हैं। मूर्तिपूजक नहीं, शास्त्रपूजक हैं।
मूर्तिपूजा नहीं करते। (ग) तेरहपंथी (१८वीं शताब्दी)। ये (ग) तेरहपंथी और बीस पंथी
चौड़ी मुखपट्टी रखते हैं। मूर्ति (१७वीं शताब्दी)। ये दोनों पूजक नहीं हैं।
मूर्तिपूजक हैं तेरह पंथ में स्त्रियाँ भगवान् का अभिषेक नहीं कर सकतीं। इनके यहाँ पूजा में सचित्त पुष्प, नैवेद्य आदि नहीं चढ़ाया जाता। बीस पंथ में ये दोनों बातें स्वीकृत हैं। ये भगवान् को चन्दन और फूलों
से अलंकृत भी करते हैं। (घ) कहानपंथी या मुमुक्षुपन्थी या
सोनगढ़ी (२०वीं शताब्दी)। ये निश्चय नय मार्ग का अनुसरण करते हैं तथा तेरहपंथी की तरह
मूर्तिपूजक हैं। ३०. गुर्वावलि-सुधर्मा, जम्बू, प्रभव, ३०. गुर्वावलि-गौतम, सुधर्मा,
शय्यंभव, यशोभद्र शिष्य, जम्बू, विष्णु, नन्दिमित्र, (संभूतिविजय और भद्रबाहु), अपराजित, गोवर्धन, भद्रबाहु। स्थूलभद्र (संभूतिविजय के शिष्य)।
इसी तरह अन्य अवान्तर भेद भी देखे जा सकते हैं। दार्शनिक सिद्धान्तों की व्याख्या में भी कहीं-कहीं अन्तर मिलता है (जैसे, प्रमाण-लक्षण, बन्धप्रक्रिया आदि)। Question (2) Is peaceful co-existence possible through Jainism? Question by: Sandeep Kumar Jain, Manager, CISCO,
USA.
Answer: Everybody wants happiness and peaceful coexistence in his life. All the religions and faiths teach us to strive