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________________ १०४ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून-१० साथ संवाद हुआ था और केशी भी अभीष्ट हैं। ने अपने ५०० शिष्यों के साथ महावीर का धर्म (पञ्चयाम तथा अचेल धर्म) स्वीकार किया था। वस्तुतः रत्नत्रय' (सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र) दोनों का मूल लक्ष्य था। २५. सुधर्मा गणधर से गुर्वावलि २५.इन्द्रभूति गौतम गणधर से गुर्वावलि प्रारम्भ है, गौतम गणधर से नहीं। प्रारम्भ होती है। इन्होंने ही १२ आज सभी सन्ताने सुधर्मा की हैं। अंगों को संयोजित किया और आगमों में कहीं-कहीं गौतम सुधर्मा को सौंपा। सुधर्मा ने द्वारा प्रश्न किए गए हैं। जम्बू को सौंपा। २६. स्थूलभद्र अन्तिम श्रुतधर (११ २६. ६८३ वर्षों तक अंगज्ञान की अंग, १४ पूर्वो के ज्ञाता) थे। परम्परा क्षीण होते हुए भी वज्रस्वामी १० पूर्वो के तथा अविच्छिन्न रही। उनके शिष्य आर्यरक्षित ९.५ पूर्वो के ज्ञाता थे। तत्पश्चात् पूर्वो का ज्ञान लुप्त हो गया। केवल ११ अंग बचे रह गये। २७. अंग बाह्य (उपाङ्ग, मूलसूत्र २७. अंगबाह्य श्रुत भी लुप्त हो गया। आदि) श्रुतों की आज भी सत्ता है परन्तु उनकी संख्या आदि में कुछ अन्तर है। २८. भगवान् के पैरों का नाखून युक्त २८. मिट्टी में पैर रखने पर जैसे चिह्न ऊपरी चरण चिह्न पूज्य है। बनते हैं वैसे भगवान् के चरण चिह्न पूज्य हैं। २९. अवान्तर पन्थ भेद २९. अवान्तर पन्थ भेद (क) चैत्यवासी या मंदिरमार्गी (चौथी- (क) भट्टारक पंथी (१३वीं पाँचवीं शताब्दी)। ये मुखपट्टी शताब्दी)। ये मूर्तिपूजक हैं। हाथों में रखते हैं परन्तु बोलते समय उसे मुख पर रखते हैं। (ख) स्थानकवासी (१५वीं शताब्दी)। (ख) तारणपंथी (१५वीं शताब्दी)। ये
SR No.525072
Book TitleSramana 2010 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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