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________________ २ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून-१० का परिष्कार। मानसिक ओर भावनात्मक विकास के लिए प्राणधारा का विकास और संतुलन आवश्यक है। प्राण के दो प्रवाह हैं- ईड़ा और पिंगला। ये प्राचीन योगशास्त्रीय नाम हैं। आज के शरीर शास्त्रीय भाषा में एक का नाम है-अनुकंपी नाड़ी तंत्र और दूसरी का नाम है-परानुकम्पी नाड़ी तंत्र। प्राण के इन दोनों प्रवाहों में जब तक संतुलन नहीं होता तब तक हम जिस प्रकार के व्यक्तित्व की परिकल्पना करते हैं, वह परिकल्पना सार्थक नहीं होती। जब प्राण का एक प्रवाह अधिक सक्रिय हो जाता है तो उद्दण्डता और उच्छंखलता पनपती है, हिंसा और तोड़फोड़ की वृत्ति बढ़ती है। यह सारा कार्य दाईं प्राणधारा की सक्रियता का परिणाम है। यदि प्राणधारा का बांया प्रवाह सक्रिय होता है तो व्यक्ति में हीन भावना का विकास होता है, भय की वृत्ति बढ़ती है, दुर्बलता आती है। दोनों का संतुलन होने पर संतुलित व्यक्तित्व का निर्माण होता है। इसके लिए समवृत्ति-श्वास-प्रेक्षा का अभ्यास बहुत महत्त्वपूर्ण है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ का मानवता को अवदान "प्रेक्षाध्यान" में समवृत्ति श्वासप्रेक्षा का गहन विवेचन उपलब्ध है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान-उपसंपदा के पाँच निम्न सूत्र दिए, जिनकी साधना सतत् और प्रत्येक क्रिया के साथ हो सकती है१. भावक्रिया-उपसंपदा का पहला सूत्र है भाव क्रिया। जिस क्रिया-काल में जो भाव है, वह भाव पूर्ण-क्रियाकाल में बना रहे, इसी का नाम भाव क्रिया है। २. प्रतिक्रिया विरति-उपसंपदा का दूसरा सूत्र है-प्रतिक्रिया विरति। क्रिया करना प्रतिक्रिया नहीं करना। ३.. मैत्री-उपसंपदा का तीसरा सूत्र है मैत्री। मैत्री का अर्थ है-सबमें आत्मोपम्य बुद्धि का विकास, आत्मानुभूति का विकास। अर्थात् जैसी आत्मा मेरे में है वैसी ही आत्मा दूसरे में है, इस प्रकार की आत्मतुल्ता का अनुभव ही यथार्थ रूप में मैत्री है। . ४. मितभाषण- आचार्यश्री महाप्रज्ञ के अनुसार-भाषा चंचलता बढ़ाने वाली है। जो अचंचल होने की साधना करना चाहते हैं, उनके लिए यथावकाश, यथोचित वाणी का संयम आवश्यक है। मितभाषण उसी का प्रयोग है।' भगवान् महावीर ने भी मौन (वचन गुप्ति) के महत्त्व को बताते हुए उपदेश दिया-वचन गुप्ति के द्वारा मनुष्य निर्विचारता को प्राप्त करता है। ५, मिताहार-उपसंपदा का पांचवां सूत्र है- मिताहार। साधना का मूल प्रयोजन है- रूपान्तरण। रूपान्तरण के लिए आहार शुद्धि का अभ्यास आवश्यक
SR No.525072
Book TitleSramana 2010 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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