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________________ संस्कृत छाया : देवभवे तव मित्रं चन्द्रार्जुन-नामकश्च य आसीत् । च्युत्वा सोऽपि ततश्चित्रगति-रत्र सञ्जातः ।। २४२।। गुजराती अनुवाद : देवभवमां चंद्रार्जुन नामनो जे तारो मित्र हतो, ते पण त्यांथी च्यवीने चित्रगति थयो छ। हिन्दी अनुवाद : देवभव में चन्द्रार्जुन नामक जो तेरा मित्र था, वह भी वहाँ से च्यवन कर चित्रगति हुआ है। (वसुमती-चंद्रप्रभादेवी ते प्रियंगुमंजरी) गाहा : वसुमई-नामा अज्जा देवी चंदप्पहा य दिय-लोए । सावि य पियंगमंजरि-नामा इह भद्द! उप्पन्ना ।। २४३।। संस्कृत छाया : वसुमति-नामी आर्या देवी चन्द्रप्रभा च दिवलोके । साऽपि च प्रियङ्गमञ्जरी-नानी इह भद्र! उत्पन्ना ।। २४३।। गुजराती अनुवाद : वसुमती नामनी साध्वी हती ते देवलोकमां चंद्रप्रभा नामनी देवी थई अने ते ज हे अद्र! प्रियंगुमंजरी नामे अहीं (आ लोकमां) उत्पन्न थई। हिन्दी अनुवाद : वसुमती नाम की साध्वी थी, वह देवलोक में चन्द्रप्रभा नाम की देवी हुई और वही हे भद्र! प्रियंगुमंजरी नाम से यहाँ (इस लोक में) उत्पन्न हुई। (पूर्वभवनो मित्र) गाहा : जं पुव्व-संगओ सो चित्तगई तेण तुम्ह संजाओ। अन्नोन्नं गुरु-नेहो सुंदर! सइ-दसणेणंपि ।। २४४।। संस्कृत छाया : यत् पूर्वसङ्गतः स चित्रगतिस्तेन तव सञ्जातः । । अन्योन्यं गुरुस्नेहः सुन्दर! सकृद् दर्शनेनापि ।। २४४।। 611
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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