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(रागने कारणे देवलोकमां पण अल्प रिद्धि अने अल्प आयुष्य) गाहा :
रूवं बलं च दित्ती रिद्धीवि य आसि थेविया तुम्ह ।
देव-भवे तुह आउं विमज्झिमं थेवयं आसि ।। २३८।। संस्कृत छाया :
रूपं बलं च दीप्तिः रिद्धिरपि चासीत् स्तोकिका तव ।
देव-भवे तव आयुर्विमध्यम् स्तोक-मासीत् ।। २३८।। गुजराती अनुवाद :
ते देव-धवन्मां छप-बल-कांति से तारी ऋद्धि अल्प हती अने तारुं आयुष्य पण विमध्यम-अल्प हतुं। हिन्दी अनुवाद :
उस देव भव में तेरा रूप-बल-कान्ति और ऋद्धि अल्प थी और तेरा आयुष्य भी विमध्यम-अल्प था।
(अहीं पण असह्य वियोग) गाहा :
एत्थवि माणुस्स-भवे अवरोप्पर-दंसणाओ आरम्भ।
दुसहं विओय-दुक्खं संजायं तुम्ह दोण्हंपि ।। २३९।। संस्कृत छाया :
अत्रापि मनुष्यभवे परस्पर-दर्शनादारभ्य ।
दुस्सहं वियोगदुःखं सञ्जातं युवयो द्वयोरपि ।। २३९।। गुजराती अनुवाद :
अहीं पण आ मनुष्यव्यवसांपण तमाटे बोने परस्पर दर्शनथी आरंथीने असह्य एवं वियोगनुं दुःख (योगवईं पडयु, थयुं। हिन्दी अनुवाद :
यहाँ इस मनुष्य भव में भी तुम दोनों के परस्पर दर्शन से आरम्भ कर असह्य वियोग का दुःख (भोगना पड़ा) था।
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