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________________ चन्द्रयशानामयै महत्तरायै समर्पिता साऽपि । साध्विगणमध्यगता शिक्षते वरसाध्वी-क्रियाम् ।। १७४।।युग्मम् गुजराती अनुवाद : ए प्रमाणे विचारी ने त्यारे गुरुर अनंगवती सहित भाइ धनवाहनने विधिपूर्वक दीक्षा आपी। त्यारबाद गुरुर अनंगवती साध्वीने चंद्रयशा नामनी महत्तरा (मोटी) साध्वी ने सोंपी ते पण साध्वी समुदायमा रहीने उत्तम प्रकारनी साध्वीनी क्रियानो अभ्यास करवा लागी। हिन्दी अनुवाद : इस प्रकार विचार करने के बाद गुरु ने अनंगवती सहित भाई धनवाहन को विधिपूर्वक दीक्षा दी। उसके बाद गुरु ने अनंगवती साध्वी को चन्द्रयशा नामक महत्तरा (बड़ी) साध्वी को सौंपा। वह भी साध्वी समुदाय में रहकर उत्तम प्रकार की साध्वी की क्रियाओं का अभ्यास करने लगी। गाहा : एवं च ताण दोण्हवि परोप्परं जाव तुट्टइ न रागो। बहुणावि हु कालेणं सुत्तत्थ-विसारयाणंपि ।।१७५।। ताव य गुरुणा भणियं एगंते भारईए महुराए । एयं न जुत्तमहुणा उत्तम-सत्ताण तुम्हाण ।।१७६।। (युग्मम्) संस्कृत छाया : एवं च तयो योरपि परस्परं यावत् त्रुट्यति न रागः । बहुनाऽपि खलु कालेन सूत्रार्थ-विशारदयोरपि ।।१७५।। तावच्च गुरुणा भणित-मेकान्ते भारत्या मधुरया । एतन्त युक्तमधुनोत्तमसत्त्वयोर्युवयोः ।।१७६।। (युग्मम्) गुजराती अनुवाद : आ प्रमाणे सूत्रार्थमां विशारद ते चंने ने घणा काल वडे पण ज्यां सुधी परस्पर राग छूट्यो नहीं त्यारे गुछर एकांतमां मधुर वाणी वडे कडूं, उतम सत्ववाला तमने हवे आ राग करवो योग्य नथी। हिन्दी अनुवाद : __इस प्रकार सूत्रार्थ में विशारद उन दोनों का बहुत काल तक भी जब परस्पर राग नहीं छूटा, तब गुरु ने एकान्त में मधुर वाणी के द्वारा कहा, 'उत्तम् सत्त्ववाले आपको अब यह राग करना उचित नहीं है।' 581
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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