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________________ (धनवाहननुं अनङ्गवती साथे पाणिग्रहण) धणवाहणोवि कमसो वडुंतो पंच धाइ - परियरिओ । पत्तो कुमार - भावं अहिज्जिओ तह कला - निवहं । । १२१ । । गाहा : संस्कृत छाया : धनवाहनोऽपि क्रमशो वर्धमानः पञ्चधात्री - परिकरितः । प्राप्तकुमार भावमधीतस्तथा कलानिवहम् ।। १२१ ।। गुजराती अनुवाद : पांच धावमाताथी पालन कराती, क्रमशः वधतो एवो धनवाहन पण कुमारभावने पाम्यो तथा सर्व कलाओमां निपुण थयो । हिन्दी अनुवाद : पाँच धाय माताओं के द्वारा पालन कराता हुआ, क्रमशः बढ़ता हुआ धनवाहनकुमार भी कुमार भाव को प्राप्त किया तथा सर्व कलाओं में निपुण हुआ । गाहा : पत्तो य जोव्वणं सो कामिणि-जण - हियय-चोरण- समत्थं । पिउणा य तन्निमित्तं वरिया वर - रुव संपन्ना ।। १२२ । । संस्कृत छाया : प्राप्तश्च यौवनं स कामिनीजनहृदय चोरणसमर्थम् । पित्रा च तन्निमित्तं वर्या वररूपसम्पन्ना । । १२२ ।। गुजराती अनुवाद : अनुक्रमे तेणे कामिनी ओनां हृदयने हरण करवामां समर्थ एवा यौवनने प्राप्त कर्यु अने पिता वडे तेना माटे श्रेष्ठरूपथी युक्त कन्या वराइ | हिन्दी अनुवाद : क्रमशः कामिनियों के हृदय को हरण करने में समर्थ ऐसी युवावस्था को प्राप्त किए हुए, उसके लिए पिता के द्वारा श्रेष्ठ रूप से युक्त कन्या का वरण किया गया। गाहा : सिरि- सुप्पट्ट - नयरे धूया हरिदत्त - पवर- इब्भस्स । विणयवई - संभूयाऽणंगवई नाम वर-कन्ना ।। १२३ ।। 557
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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