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________________ ध्वनिवर्धक का प्रश्न हल क्यों नहीं होता? क्या विद्युत अग्नि है? : ११ ४७) में नरक की उष्ण वेदना का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यहाँ धरती की प्रचण्ड अग्नि से वह नरक भूमि की उष्णता अनन्तगुना है, तो वह पृथ्वी भी अग्नि है क्या? हमारा शरीर भी उष्ण रहता है, बुखार में तो ताप कई गुना बढ़ जाता है, तो क्या यह सब अग्नि का काम है? उदरस्थ भोजन पचता है, इसके लिए जठराग्नि की कल्पना की गई है, तो क्या वस्तुतः जैन परम्परा भी पेट में अग्नि काया मानती है? समुद्र का तथाकथित बड़वानल क्या वस्तुतः अनल अर्थात् अग्नि है, या केवल एक ताप है? उक्त वर्णनों को विवेचक-बुद्धि से पढ़ते हैं, तो पता लगता है कि वस्तुतः लोकमान्यता क्या है? और इसके विपरीत सही वस्तुस्थिति क्या है? __ जैन आगमों के अनुसार अग्निकाय अढ़ाई द्वीप समुद्र पर्यन्त मनुष्य क्षेत्र तक ही सीमित है। मनुष्य क्षेत्र के सिवा अन्यत्र कहीं अग्नि नहीं होती है। परन्तु राजप्रश्नीय के सूर्याभदेवाधिकार में स्वर्ग में भी धूप दान का वर्णन है। वह क्या है? स्वर्ग में तो अग्नि नहीं है। भगवतीसूत्र (३/१/१३६) में ईशानेन्द्र का वर्णन है। उसने दूसरे देवलोक से ज्यों ही पाताललोकान्तर्गत बलिचंचा राजधानी को देखा, वह जलते अंगारों के समान दहकने लगी, भस्म होने लगी। क्या ईशानेन्द्र की आँखों में वस्तुतः अग्नि थी? पहले सौधर्मेन्द्र ने जब चमरेन्द्र पर अपना वज्र छोड़ा तो उसमें से हजारों-हजार ज्वालाएँ निकलने लगी और वह वज्र अग्नि से भी अधिक प्रदीप्त हो गया। क्या यह सब भी अग्नि है? स्वर्ग में अग्नि के अस्तित्व का निषेध है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि वह अग्नि नहीं, कुछ और ही चीज है। नरक में भी आग जलती हुई बताई गयी है, जबकि वहाँ शास्त्रानुसार आग होती ही नहीं है। . ____ अग्नि ही नहीं, अन्य अचित्त पुद्गल भी उष्ण होते हैं और प्रकाश आदि की क्रियाएँ करते हैं। भगवतीसूत्र में गौतम का प्रश्न है कि भगवन्! क्या अचित्त जड़ पुद्गल भी चमकते हैं, तपते हैं और आसपास में प्रकाश करते हैं? भगवान् ने उत्तर स्वीकृति में दिया है, अचित्त पुद्गलों को प्रकाशक माना है। 'अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति उज्जोवेंति, तवेंति, पभासंति? हंता अत्थिा' (भग. ७/१०/३०७) अरंडी या ऊन का वस्त्र भी विद्युत् विसर्जन की क्रिया करता है। सर्दी में रात के समय जब अरंडी या ऊन के वस्त्र को झटकते हैं तो उसमें से इधरउधर चिनगारियाँ चमकती दिखाई देती हैं, स्फुल्लिंग उड़ते नजर आते हैं, चर्रचर्र की ध्वनि भी होती है। प्रश्न है, यह सब क्या है? क्या सचमुच में यह अग्नि है? यह अग्नि नहीं है। सब विद्युत् का तमाशा है, और कुछ नहीं। टैरिलिन के
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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