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________________ श्रीमद्धनेश्वरसूरिविरचितं सुरसुंदरीचरिअं अट्टमो परिच्छेओ ( चित्रवेगना मनमां थता विचारो ) गाहा : अहयंपि तओ दक्खिण - दिसा मुहो सह पियाए संचलिओ । चिंतेमि य किं काही खयरो नहवाहणो इहि ? । । १ । । संस्कृत छाया : अहमपि ततो दक्षिणदिशामुखः सह प्रियया सञ्चालितः । चिन्तयामि च किं करिष्यति खचरो नभोवाहन इदानीम् ।। १ ।। गुजराती अनुवाद : त्यारबाद हुं पण दक्षिण दिशा तरफ प्रियानी साथे चाल्यो अने हवे नभोवाहन विद्याधर शुं करशे? एना विचारमां पड़ी गयो । हिन्दी अनुवाद : उसके बाद मैं भी दक्षिण दिशा की ओर अपनी प्रिया के साथ चल पड़ा और अब नभोवाहन विद्याधर क्या करेगा? यह सोचने लगा। गाहा : कय- सुर- रक्खस्स महं बहु - विज्जा - दप्पिओवि सो खयरो । न हु सक्किस्सइ काउं अवयारं गरुय - रोसोवि । । २ । । संस्कृत छाया : कृतसुररक्षस्य मम बहुविधा- दर्पितोऽपि स खचरः । न खलु शक्ष्यति कर्तुमपकारं गुरुकरोषोऽपि ।। २॥ गुजराती अनुवाद : घणी विद्याथी गर्विष्ठ तथा भारे क्रोधायमान एवो पण विद्याधर देव 503
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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