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१२६ : श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४, १/ अक्टू.-दिसम्बर ०९-जन.-मार्च-१०
a source of constant support and inspiration for Parshwanath Vidyapeeth, shared many new informations, and events emerging fastly in the world. He talked about the challenges of 21st Century and its remedy through Jainism.
The important part of the lactures was that cross discussions were held between speakers and house on different aspects of Jainism. The vote of thanks was given by Dr. Sudha Jain.
पुस्तक-विमोचन पार्श्वनाथ विद्यापीठ व आई. एस.जे.एस. (इन्टरनेशनल सेन्टर फार जैन स्टडीज)के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित एक दिवसीय सेमिनार में दिनांक १७ नवम्बर २००९ को जैन धर्म व साहित्य के दो महत्त्वपूर्ण पुस्तकों- डा. महेन्द्र प्रताप सिंह, पी.जी. कालेज, मड़िहान द्वारा रचित 'बृहत्कल्पसूत्र का सांस्कृतिक अध्ययन' तथा डा० राम कुमार गुप्त, प्रवक्ता, दर्शन विभाग, तिलकधारी पी.जी कालेज, जौनपुर द्वारा लिखित 'वेदान्त परिभाषा पर न्याय दर्शन के प्रभाव की समीक्षात्मक परीक्षा' का विमोचन किया गया। इस अवसर पर पार्श्वनाथ विद्यापीठ के मुख्य पदाधिकारियों में श्री इन्द्रभूति बरड़, आई.एस.जे. एस. के निदेशक डॉ. शुगनचन्द जैन, डॉ.सुलेख जैन, प्रो. क्रॉमवेल क्राफोर्ड, उनकी पत्नी माटिल्डा क्रॉफोर्ड, प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी, पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सहनिदेशक डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय समेत अन्य विशिष्ट विद्वान उपस्थित थे।
बृहत्कल्पसूत्र, आचार्य संघदास गणि द्वारा रचित साधु-साध्वियों के आचार से सम्बन्धित ग्रन्थ है। अभी तक इसका हिन्दी अनुवाद उपलब्ध न होने के कारण पाठक इसके विशेष लाभ से वंचित थे किन्तु जैन विश्व भारती द्वारा इसके अनुवाद से तथा डॉ. महेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा इसके सांस्कृतिक अध्ययन से इस विषय पर और भी प्रकाश पड़ेगा व पाठकगण इसका समुचित लाभ उठा पायेंगे।
दूसरी विमोचित पुस्तक 'वेदान्त परिभाषा पर न्याय दर्शन के प्रभाव की समीक्षात्मक परीक्षा' में वेदान्त और न्याय दर्शन का तुलनात्मक, गवेषणात्मक, एवं समन्वयात्मक परिशीलन लेखक ने किया है। इस ग्रन्थ से न्याय दर्शन एवं अद्वैत वेदान्त के सम्बन्धों में एक नवीन चिंतन दृष्टि प्रकट होगी एवं दोनों दर्शनों के अनेक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों पर नवीन प्रकाश पड़ेगा।