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पार्श्वचन्द्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
से लेकर देवचंद्रसरि तक का अपेक्षाकृत विस्तार से परिचय दिया गया है, जो इस प्रकार है:
तालिका-५
वादिदेवसूरि
पद्मप्रभसूरि (वि०सं० ११९४ में आचार्य पद पर
प्रतिष्ठापित, भुवनदीपक नामक ज्योतिष शास्त्र की कृति के रचनाकार, वि०सं० १२४० में स्वर्गस्थ)
प्रसन्नचन्द्र (वि०सं० १२३६ में आचार्य पद : वि०सं०
| १२८६ में स्वर्गस्थ) गुणसमुद्रसूरि (वि०सं० १३०१ में स्वर्गस्थ) जयशेखरसूरि (वि०सं० १३०१ में नागौर में आचार्य
पद प्राप्त) वज्रसेनसूरि (लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित,
| गुरुगुणषट्त्रिंशिका आदि के कर्ता) हेमतिलकसरि (वि०सं०१३९९ या १४०० में बोलाडा
में आचार्य पद प्राप्त) (श्रीपालचरित
आदि अनेक कृतियों के कर्ता) हेमचन्द्रसूरि (श्रीपालचरित की प्रथमादर्शप्रति के
| लेखक) पूर्णचन्द्रसूरि (वि०सं० १४३० में आचार्य पद प्राप्त) हेमहंससरि (वि०सं०१४५३ में आचार्य पद प्राप्त)
नागापुरीयतपागच्छ से अलग होकर वि०सं० १५७५ में अपना मत प्रकट किया,
वि०सं० १६१२ में स्वर्गस्थ) समरचन्द्रसूरि (वि०सं० १६०५ में आचार्य
पद, वि०सं० १६२६ में
स्वर्गस्थ) राजचन्द्रसूरि विमलचन्द्रसूरि जयचन्द्रसूरि (वि०सं० १६९९ में स्वर्गस्थ) पद्मचन्द्रसूरि (वि०सं० १७४४ में स्वर्गस्थ) मुनिचन्द्रसूरि (वि०सं० १७४४ में आचार्य पद;
वि०सं० में स्वर्गस्थ) नेमिचन्द्रसूरि (वि०सं० १७५० में आचार्य पद;
वि०सं० १७९० में स्वर्गस्थ) कनकचन्द्रसूरि शिवचन्द्रसूरि (वि०सं० १८२३ में स्वर्गस्थ) भानुचन्द्रसूरि विवेकचन्द्रसूरि लब्धिचन्द्रसूरि हर्षचन्द्रसूरि (वि०सं० १९१३ में स्वर्गस्थ)
हेमचन्द्रसूरि (वि०सं० १९४० में स्वर्गस्थ) मुक्तिचन्द्रसूरि
हेमसमद्र
भ्रातृचन्द्रसूरि (वि०सं० १९६७ में आचार्यपद
वि०सं० १९७२में स्वर्गस्थ)
पंन्यास लक्ष्मीनिवास (वि०सं०१४७० में
विद्यमान) पंन्यास पुण्यरत्न (वि०सं० १४९९ में विद्यमान) पंन्यास साधुरत्न (वि०सं० १५३७ में आचार्य
पद, वि०सं० १५६५ में
स्वर्गस्थ) पार्श्वचन्द्रसूरि (वि०सं० १५६५ में आचार्य
पद; वि०सं० १५७२ में
देवचन्द्रसूरि सागरचन्द्रसूरि (वि०सं० १९९५ में स्वर्गस्थ)
मुनि वृद्धिचन्द्र
जैसा कि ऊपर देख चुके हैं प्रथम पट्टावली में पद्मप्रभसूरि के पट्टधर प्रसत्रचन्द्रसूरि द्वारा वि०सं० ११७४ में नागपुरीय