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तपागच्छ की स्थापना का उल्लेख है। चूंकि नागपुरीय तपागच्छ से सम्बद्ध ग्रन्थ प्रशस्तियों तथा अन्य सभी पट्टावलियों में समान रूप से पद्मप्रभसूरि को यह श्रेय दिया गया है, अतः उक्त विवरण को पट्टावलीकार की भूल मानी जाये अथवा हिया की या ग्रन्थ के सम्पादक की, यह विचारणीय है।
चूँकि पार्श्वचन्द्रगच्छ का प्रादुर्भाव नागपुरीयतपागच्छ के मुनि साधुरत्न के शिष्य पार्श्वचन्द्रसूरि से हुआ है और जैसा कि पट्टावलियों में ऊपर हम देख चुके हैं इनमें पार्श्वचन्द्रसूरि और इनकी शिष्य परम्परा में हुए पट्टधर आचार्यों का क्रम एक-दो नामों को छोड़कर प्राय: समान रूप से मिलता है, जिसे एक तालिका के रूप में निम्न प्रकार से रखा जा सकता है: तालिका - ६
हेमचन्द्रसूरि
पार्श्वचन्द्रसूरि I
समरचन्द्रसूरि
I
राजचन्द्रसूरि
विमलचन्द्रसूर
जयचन्द्रसूरि
पद्मचन्द्रसूरि
मुनिचन्द्रसूरि
'
नेमिचन्द्रसूरि
कनकचन्द्रसूरि 1 शिवचन्द्रसूरि
भानुचन्द्रसूरि
विवेकचन्द्रसूरि T लब्धचन्द्रसूरि
श्रमण, वर्ष ६०, अंक १ / जनवरी-मार्च २००९
T
हर्षचन्द्रसूरि
भ्रातृचन्द्रसूरि
मुक्तिचन्द्रसूरि
देवचन्द्रसूरि
सागरचन्द्र I
मुनिवृद्धिचन्द्र
पट्टावलियों से पार्श्वचन्द्रसूरि के केवल एक शिष्य समरचन्द्र का नाम मिलता है, किन्तु ग्रन्थप्रशस्तियों से उनके एक अन्य शिष्य विनयदेवसूरि का भी ज्ञात होता है, जिनसे सुधर्मागच्छ अस्तित्त्व में आया । २०अ इसी प्रकार पट्टावलियों से जहां समरचन्द्रसूरि के एक शिष्य राजचन्द्रसूरि का नाम ज्ञात होता है, वहीं ग्रन्थ प्रशस्तियों से उनके दूसरे शिष्य रत्नचारित्र तथा प्रशिष्यों विमलचारित्र और वच्छराज का भी पता चलता है । इनके द्वारा रची गयी विभिन्न कृतियां मिलती हैं। राजचन्द्रसूरि के अन्य शिष्यों हंसचन्द्र, देवचन्द्र, श्रवणऋषि तथा उनके प्रशिष्यों पूंजाऋषि, वीरचन्द्र, मेघराज आदि के नाम ग्रन्थ प्रशस्तियों से ही ज्ञात होते हैं।
इसी प्रकार जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं पट्टावलियों में जयचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में पद्मचन्द्रसूरि का नाम मिलता है। इनके द्वारा रचित शालिभद्रचौढालिया (रचनाकाल वि०सं० १७२१ / ई० सन् १६६५) नामक एक कृति प्राप्त होती है। इनके पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि और मुनिचन्द्रसूरि के
चन्द्रसूरि हुए, जिनकी वि०सं० १७९८ में बीकानेर के श्रीसंघ ने चरणपादुका स्थापित करायी २२ । मुनिचन्द्रसूरि के पट्टधर कनकचन्द्रसूरि हुए जिनका नाम वि०सं० १८३२/ई० सन् १७७६ में प्रतिलिपि की गयी श्रीपालकथाटब्बा की दाता प्रशस्ति में भी मिलता है। २३ जैसा कि पट्टावलियों में ऊपर हम देख चुके हैं कनकचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में शिवचन्द्रसूरि का नाम मिलता है। इनके द्वारा वि०सं० १८१५ में अपने गुरु कनकचन्द्रसूरि की चरणपादुका स्थापित करायी गयी । २४
संवत् १८१५ वर्षे मासोत्तम श्री फाल्गुनमासे कृष्ण पक्षे षष्ठी तिथौ रविवारे श्रीपूज्य श्रीकनकचंद्रसूरिणां पादुका कारापिता च भट्टारक श्रीशिवचंद्रसूरीश्वरै :
कनकचन्द्रसूरि के एक अन्य शिष्य वक्तचन्द्र हुए जिनके एक शिष्य सागरचन्द्र ने वि०सं० १८८४ में अपने गुरु की चरणपादुका स्थापित करायी। २५