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________________ २६ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/ अक्टूबर-दिसम्बर २००८ करता है तथा भिक्षु संघ में उसका निर्धारण करता है, यथा- 'श्मशानिक को ग्रहण करने वाला 'उत्कृष्ट' होता है। प्रव्रजित भिक्षु ले लेंगे यह सोचकर रखे गये वस्त्र को ग्रहण करने वाला 'मध्यम' होता है तथा चरण पर रख कर दिये गये को ग्रहण करने वाला निम्न कोटि का पांसुकूलिक होता है। भेद अर्थघटन का वह उपकरण है जिसके द्वारा धुतंग विशेष का पारिभाषिक लक्षण स्पष्ट होता है। पारिभाषिक लक्षण उस लक्षण को कहते हैं जिसकी अनुपस्थिति कोई पद या वस्तु अपने मूल अर्थ या मूल स्वरूप में नहीं रहती । हास्पर्स के शब्दों 'A defining characteristic of a thing.... is a characterstics in the absence of which the word would not be applicable to the thing."5 किसी विशेषता का पारिभाषिक होना या न होना सदैव कसौटी पर निर्भर होता है। यदि वह विशेषता चीज में न हो तो क्या फिर भी वह शब्द उस पर लागू होगी? यदि उत्तर 'नहीं' है तो फिर यह विशेषता पारिभाषिक लक्षण है; यदि उत्तर 'हाँ' है तो वह आनुषंगिक गुण मात्र है । १६ हास्पर्स के शब्दों में 'A defining characteristic is a sine qua non (literally without which not).' क्या यह चीज तब भी 'X' होगी जब उसमें विशेषता 'B' नहीं हो? यदि नहीं तो ‘B’ ‘X’ की अविनाभाव विशेषता है 'sine qua non' है, अर्थात् पारिभाषिक लक्षण है। इस दृष्टि से जब हम पंसुकूलिकांग के 'भेद' नामक उपकरण को देखते हैं तो हम पाते हैं कि यह इसके पारिभाषिक लक्षण को प्रकाशित करता है। पंसुकूलिकांग का पारिभाषिक लक्षण है 'गृहस्थ प्रदत्त वस्त्र का त्याग।' जैसे ही कोई पांसुकूलिक गृहस्थ से वस्त्र ग्रहण कर लेता है वैसे ही उसका धुतंग खंडित हो जाता है। वह पांसुकूलिक नहीं रहता । उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि धुतंगनिद्देस में विभिन्न धुतंगों के अर्थ स्पष्टीकरण हेतु पाँच उपकरणों की सहायता ली गयी है इसके अतिरिक्त तीन उपकरण और हैं वे वस्तुतः विश्लेषण आधारित हैं। विस्तार भय के कारण उनकी चर्चा यहाँ नहीं कर रहे हैं। साथ ही विश्लेषण वस्तुतः दार्शनिक विधि है जिसका प्रयोग इस ग्रन्थ के प्रणयन में हुआ है। यद्यपि ये भी धुतंग के विभिन्न प्रयोग एवं परिप्रेक्ष्य विशेष में प्रयुक्त हुए हैं, फिर भी इनकी चर्चा यहाँ अपेक्षित प्रतीत नहीं होती। दूसरी बात यह है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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