SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर २००८ अभिप्राय होता है। किसी श्रोता को पदों के अर्थ का सामान्य रूप से ज्ञान होता है पर विशेष रूप से अर्थ को जानने की शक्ति नहीं होती। शब्द के अनेक अर्थ हैं, उनमें किस अर्थ को लेना चाहिए इस विषय में उसको संदेह हो जाता है। कभी-कभी इस प्रकार के श्रोता को भ्रम हो जाता है । उत्पन्न होने वाले संदेह, भ्रम और अज्ञान का निराकरण हो जाए उसके लिए निक्षेपों का विधान किया गया है। निक्षेपों को जानकर प्रकरण आदि के द्वारा श्रोता अभिप्रेत अर्थ को ग्रहण कर लेता है और अन्य अर्थ का त्याग कर देता है। प्रकरण आदि को समझने में निक्षेप सहायता करता है। श्रोता पारमार्थिक अर्थ को जानकर निक्षेप की सहायता से उसका उचित स्थान में विनियोग कर सकता है। ८० : जिस शब्द के अनेक अर्थ होते हैं उसका विशेष अर्थ प्रकरण की सहायता से जाना जाता है, इसका प्रसिद्ध उदाहरण 'सैन्धव' शब्द है। सैन्धव शब्द के दो अर्थ हैं और वे दोनों मुख्य हैं। एक अर्थ अश्व है और दूसरा अर्थ लवण है। यदि वक्ता कहे 'सैन्धवं आनय' अर्थात् सैन्धव को लाओ तो श्रोता सुनकर संदेह करने लगता है कि मुझे अश्व लाने को कहा गया है या लवण लाने को । निक्षेप के अनुसार जिसने जान लिया है कि सैन्धव शब्द का यहाँ पर भाव निक्षेप अश्व है अथवा लवण, उसको अश्व वाच्य है अथवा लवण इस प्रकार का संदेह नहीं होता । संक्षेप में निक्षेप का अर्थ है - 'प्रस्तुत अर्थ का बोध देने वाली शब्द रचना या अर्थ का शब्द में आरोपण।' अप्रस्तुत अर्थ को दूर रखकर प्रस्तुत अर्थ का बोध कराना इसका फल है। यह संशय और विपर्यय को दूर करता है । संख्या की दृष्टि से अधिक से अधिक वस्तु-विन्यास के जितने क्रम हैं उतने ही निक्षेप हैं किन्तु कम से कम चार अवश्य होते हैं १. नाम निक्षेप २. स्थापना निक्षेप ३. द्रव्य निक्षेप ४. भाव निक्षेप ।" १. नाम निक्षेप : व्यवहार की सुविधा के लिए वस्तु को अपनी इच्छा के अनुसार जो संज्ञा प्रदान की जाती है वह नाम निक्षेप है। जैन तर्कभाषा में यशोविजय जी ने नाम निक्षेप को समझाते हुए कहा है - प्रकृत अर्थ की अपेक्षा न रखने वाला नाम या नाम वाले पदार्थ की परिणति नाम निक्षेप है ।' नाम सार्थक और निरर्थक दोनों प्रकार का हो सकता है। सार्थक नाम 'इन्द्र' है और निरर्थक नाम 'डित्थ' है । किन्तु जो नामकरण केवल संकेत मात्र होता है जिसमें उस वस्तु की जाति, द्रव्य, गुण, क्रिया आदि की अपेक्षा नहीं होती वह नाम निक्षेप है। " किसी निरक्षर व्यक्ति का नाम विद्यासागर है या किसी गरीब व्यक्ति का नाम लक्ष्मीपति है। लेकिन विद्यासागर और लक्ष्मीपति का जो अर्थ होना चाहिए, वह उनमें नहीं मिलता। इसलिए ये नाम निक्षिप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy