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________________ ७६ 40 श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर २००८ उदय की तिथि २५०० ईसा पूर्व मानी है तो विदेह राज्य की स्थापना का काल भी इसी के आस-पास होना चाहिए। शतपथब्राह्मण में कृतिका को वर्तमान कालिक के रूप में उल्लेखित किया गया है। कई विद्वानों का मानना है कि हड़प्पा संस्कृति के पुरास्थलों का वसाव भी कृतिका के आधार पर ही पूर्व-पश्चिम दिशा में व्यस्थित किया गया है, जिसकी तिथि ३५०० - २८०० ईसा पूर्व (आरम्भिक हड़प्पा ) तथा २७००-२००० ईसा पूर्व (विकसित हड़प्पा ) होनी चाहिए। विद्वान का मानना है जैन धर्म प्राचीनकाल में अर्हत् धर्म के नाम से ही प्रसिद्ध रहा है। जैन धर्म का पूर्व रूप अर्हत् धर्म था । जैन शब्द महावीर के निर्वाण के लगभग १००० वर्ष पश्चात् ही कभी अस्तित्व में आया । ७वीं शती से पूर्व कहीं भी जैन शब्द का उल्लेख नहीं मिलता है, यद्यपि इसकी अपेक्षा 'जिन' व 'जिन धम्म' का उल्लेख प्राचीन है। जैन परम्परा का मानना है कि ऋषभदेव (प्रथम तीर्थंकर) से पूर्व मानव पूर्णत: प्रकृति पर आश्रित था। ऋषभदेव ने ही समाज-व्यवस्था एवं शासनव्यवस्था की नींव डाली तथा कृषि एवं शिल्प द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना सिखाया । प्रकृति पर आश्रित समाज से कृषि तथा शिल्प पर आधारित जीवन प्रारम्भ करने की स्थिति को इतिहास एवं पुरातत्त्व की शब्दावली में नवपाषाण काल कहा गया है। भारतीय उपमहाद्वीप में ऐसी स्थितियाँ अलग-अलग स्थानों पर भिन्नभिन्न कालों में आयी हैं। पश्चिमोत्तर भारत में यह स्थिति लगभग ७वीं-६ठी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में प्रारम्भ हुई। इस दृष्टि से ऋषभ का काल ७वीं -६ठी सहस्राब्दी ईसा पूर्व माना जा सकता है। जैन धर्म के २४ तीर्थंकरों में से १९ वें तीर्थंकर मल्लिनाथ एवं २१वें तीर्थंकर नेमिनाथ का सम्बन्ध मिथिला से है। मिथिला में ही उन दोनों ने दीक्षा ली और कैवल्यज्ञान प्राप्त किया ।' बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य को भी चम्पा (भागलपुर) जो उस समय विदेह (मिथिला) का ही अंग था, में निर्वाण प्राप्त हुआ था। तीर्थंकरों के समय एवं कालों पर ध्यान दें तो महावीर का काल ६ठी शताब्दी ईसा पूर्व है । २३वें तीर्थंकर का काल (महावीर से २५० वर्ष पूर्व) ९वीं - ८वीं शताब्दी ईसा पूर्व रहा होगा । २२ वें तीर्थंकर अरिष्टनेमि (जैन मान्यतानुसार अरिष्टनेमि भगवान् कृष्ण के चचेर भाई) हैं। कृष्ण का काल अर्थात् महाभारत का काल फर्गुसन' ने ईसा पूर्व तेरहवीं शताब्दी माना है। आर० शास्त्री" ने भी इसे तेरहवीं शताब्दी ई० पूर्व ही माना है। जबकि पार्जिटर" ने इसे १८०० ईसा पूर्व के लगभग माना है। इन तिथियों से स्पष्ट होता है कि २१वें तीर्थंकर नेमिनाथ का काल लगभग १८वीं शताब्दी ईसा पूर्व का रहा होगा। इस आधार पर बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य का काल मिथिला राज्य की स्थापना काल के आसपास माना जा सकता है। अतः कहा जा सकता है कि १८वीं शताब्दी ईसा पूर्व भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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