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मिथिला और जैन धर्म :
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मिथिला जैन केन्द्र के रूप में विख्यात रहा होगा। यहाँ (मिथिला में) पर भगवान् महावीर ने छः वर्षावास२ बिताए तथा धर्मोपदेश दिया। बौद्ध ग्रन्थों में भी ऐसे अनेक दृष्टांत मिलते हैं; जिससे पता चलता है कि बुद्ध के समय वैशाली और विदेह के नागरिकों पर महावीर का अधिक प्रभाव था। जैनों का मत है कि विदेह आर्य देश का एक अभिन्न अंग था। यहीं तित्थयरों, गवहवाट्टियों और बलदेवों और वासुदेवों का जन्म हुआ था तथा वे यहीं सिद्धि प्राप्त किए थे और उनके उपदेशों के फलस्वरूप इन क्षेत्रों के अनेक नागरिकों ने संन्यास लेकर ज्ञान-प्राप्त किया था।९३
लगभग ५वीं शताब्दी ईसा पूर्व से मिथिला और वैशाली दोनों मगध साम्राज्य के अन्तर्गत आ गये। जैन धर्म की लोकप्रियता से प्रभावित होकर बिम्बिसार, नन्द, चन्दगुप्त मौर्य, सम्प्रति खारवेल आदि कई शासकों ने न केवल इसे संरक्षण दिया, बल्कि इसका प्रचार-प्रसार भी करवाया। गुप्त काल में जैन धर्म के धार्मिक एवं अन्य साहित्य का संग्रह एवं सम्पादन हुआ। छठी शताब्दी और उसके बाद के अभिलेखों में जैन धर्म की अधिक चर्चा मिलती है। ह्वेनसांग ने भी अपने विवरण में लिखा है कि जैन धर्म भारत में तो फैल ही चुका था तथा उसके बाहर भी उसका प्रभाव धीरे-धीरे फैल रहा था। लेकिन तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी तक आते-आते उत्तर बिहार और उसके आस-पास के क्षेत्रों में जैन और बौद्ध धर्म का अत्यधिक ह्रास हो चुका था। लेकिन १३वीं शती के तिब्बतीय बौद्ध यात्री धर्मस्वामी के विवरण में कहीं भी बौद्ध और जैनों का उल्लेख नहीं मिलता है। उसने तिरहुत (मिथिला) को . बौद्धविहीन राज्य कहा है।१४
मिथिला राज्य की स्थापना वैदिक धर्म के विकास के रूप में हुआ था। परन्तु यहाँ पर कभी धार्मिक सहिष्णुता कठोरता को अंगीकार न कर सकी। कारण कि यहाँ पर प्रत्येक काल में धार्मिक विद्वानों ने धार्मिक सहिष्णुता को बनाये रखा। धार्मिक विषय में कठोरता लाने के विषय में हमेशा वाद-विवाद होता रहा लेकिन साम्यता बनी रही। राजा जनक और याज्ञवल्क्य का उदाहरण उपनिषद्-युग में देखने को मिलता है।
ऋषियों और दार्शनिकों ने पुरोहितवाद पर भयंकर आघात किया, उसकी घोर भर्त्सना की। फलस्वरूप ब्राह्मण-धर्म इस क्षेत्र में ज्यादा कठोर नहीं हो पाया। इस प्रकार के परिवेश में महावीर ने अपनी शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया तथा इस क्षेत्र में काफी संख्या में उन्होंने अपने अनुयायी बनाये। बुद्ध के जीवन-काल में भी लिच्छवि, मल्ल तथा काशी-कोसल के राज्य महावीर तथा अन्य निर्ग्रन्थ अनुयायियों के कार्य-क्षेत्र थे जिसमें राजगृह, नालन्दा, वैशाली, पावापुरी और श्रावस्ती जैन धर्म के प्रमुख केन्द्र थे। महावीर द्वारा दीक्षित धर्मोपदेशक अपनी सदाचारिता एवं अनुशासनिक कट्टरता के
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