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जैन दर्शन में जीव का स्वरूप
श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३ जुलाई-सितम्बर २००८
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आत्मा, कर्म - पुनर्जन्म, मोक्ष आदि भारतीय चिन्तन के आधारभूत तत्त्व हैं। प्राचीनकाल से दर्शनशास्त्र स्वतंत्र, स्वयंभू और सृष्टि संचालक तत्त्व के रूप जीव तत्त्व की खोज करता आ रहा है। उपनिषदों में जीव/ चेतना और ब्रह्म सम्बन्धी विचारों का स्वरूप सर्वशक्तिमान के रूप में उपलब्ध होता है। चार्वाक दर्शन चाहे आत्मा / जीव की शाश्वतता को स्वीकार नहीं करता, फिर भी चार भूतों के मिश्रण से प्राप्त जीवशक्ति को स्वीकार करता है। न्याय-वैशेषिक जीवात्मा की सत्ता को स्वीकार करते हैं लेकिन आत्मा को एक ऐसा द्रव्य मानते हैं जिसमें बुद्धि या ज्ञान, सुख-दुःख, राग-द्वेष, इच्छा, कृति या प्रयत्न आदि गुण के रूप में विद्यमान रहते हैं । जीव या आत्मा एक ऐसा तत्त्व है, जो प्रत्येक शरीर में विद्यमान नित्य और विभु है। सांख्य-योग दर्शन का जीव अकर्ता, अभोक्ता, अज और शाश्वत है। यह जीव त्रिगुणातीत सत्त्व, रज और तम से मुक्त और निर्लिप्त है। मीमांसक जीव को अमर मानते हुए कहते हैं कि मृत्यु के उपरान्त भी जीव विद्यमान रहता है, अपने किये शुभ कर्मों के योग से स्वर्ग जाता है। प्रभाकर मतानुसार जीव में ज्ञान, सुख-दुःख आदि अनेक गुण विद्यमान रहते हैं। बौद्ध दर्शन में रूपवेदना - विज्ञान - संज्ञा और संस्कार इन पाँच स्कन्ध समूह के अनुरूप विज्ञान शक्ति को
स्वीकार किया गया है। इस प्रकार विभिन्न दार्शनिकों ने आत्मतत्त्व को विभिन्न रूपों में स्वीकार किया है। उदाहरणार्थ सांख्य और वेदांत दर्शन में वह कूटस्थ नित्य है, उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन एवं परिणमन मान्य नहीं । ज्ञान, सुख-दुःखादि परिणाम प्रकृति अथवा अविद्या जनित हैं। वैशेषिक और नैयायिक ज्ञानादि को जीव का गुण मानते हुए जीव को एकान्त नित्य और अपरिणामी स्वीकार करते हैं। बौद्ध दर्शन में जीव एकान्तक्षणिक अर्थात् निरन्वय परिणामों का प्रवाह मात्र है। अन्य दर्शन जिसे आत्मा कहते हैं उसे ही जैन दर्शन जीव के नाम से सम्बोधित करता है। जैन दर्शन के अनुसार जिस प्रकार प्राकृतिक जड़ पदार्थ न तो कूटस्थनित्य है और न एकान्त क्षणिक, उसी प्रकार आत्मा भी एकान्त नित्य एवं एकान्त परिणमनशील नहीं है। आत्मा परिणामी नित्य है । दर्शन की दृष्टि से चेतना जीव की एक सूक्ष्म अभौतिक बोधात्मक शक्ति है, जो ज्ञान, दर्शन, इन दो रूपों में अभिव्यक्त होती है । विस्तृत रूप में जैन दर्शन में आत्मा का * वीर कुंवर सिंह कालोनी, पोखरा मोहल्ला, हाजीपुर - ८४४१०१
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नीरज कुमार सिंह *
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