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५२ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३/जुलाई-सितम्बर २००८ ११. रन्नो निवेइयम्मिं तेसिं वयणे गवेसणा होति।
ओसह वेज्जा संबंधुवस्सए तीसुबी जयणा।। -बृहत् कल्पसूत्रम्, ६२१९, १२. तस्स य भूततिगिच्छा, भूतरवावेसणं सयं वा वि।
णीउत्तमं च भावं णाउं किरिया जहा पुव्वं।। -वही, ६२६२, १३. गोयमा। दुविहे उम्मादे पण्णत्ते, तं जहा जक्खाएसे य मोहणिज्जस्स य
कमस्स उदएणं। तत्थ णं जे से जक्खाएसे से णं सुहवेयणतराए चेव, सुहविमोयणतराए चेव। तत्थ णं जे से मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं से णं दुहवेयणतराए चेव, दुहविमोयणतराए चेव। व्याख्याप्रज्ञप्ति, सम्पा०युवाचार्य मधुकर मुनि, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, (राज०),
१४/२/१, १४. भगवती आराधना, सम्पा०- पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, प्रकाo- जैन
संरक्षक संघ, सोलापुर, २००६, गाथा ८८७-८८९
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