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पाश्चात्य एवं जैन मनोविज्ञान में मनोविक्षिप्तता एवं उन्माद :
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स्वयं वहाँ जाकर मन, वचन और सेवारूप शरीर द्वारा प्रतिदिन उसका चित्त शान्त करे। इसी तरह साध्वी के यक्षाविष्ट हो जाने पर भूत-चिकित्सा का भी विधान जैनागमों में देखने को मिलता है।११
उन्माद
उन्मत्तता अर्थात् जिससे स्पष्ट या शुद्ध चेतना (विवेकज्ञान) लुप्त हो जाये, उसे उन्माद कहते हैं। उन्माद नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में पाया जाता है। उन्माद के प्रकार
भगवतीसूत्र में उन्माद के दो रूप बताये गये हैं- (१) यक्षावेश उन्माद एवं (२) मोहनीयजन्य उन्माद। यक्षावेश उन्माद का सुखपूर्वक वेदन किया जाता है और उसे सुखपूर्वक छुड़ाया यानी विमोचन कराया जा सकता है। मोहनीयजन्य उन्माद का दुःखपूर्वक वेदन होता है और उससे दुःखपूर्वक ही छुटकारा पाया जा सकता है।९२
यक्षावेश उन्माद : शरीर में भूत, पिशाच, यक्ष आदि देव विशेष के प्रवेश करने से जो उन्माद होता है, वह यक्षावेश उन्माद कहलाता है।१३ नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में इन दोनों प्रकार के उन्माद पाये जाते हैं। किन्तु इनकी उत्पत्ति के कारण में थोड़ा-बहुत अन्तर पाया जाता है। यथा-चार प्रकार के देवों को छोड़कर नैरयिकों, पृथ्वीकायादि तिर्यञ्चों और मनुष्यों पर कोई देव अशुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करता है, तब वे यक्षावेश-उन्माद ग्रस्त होते हैं, पर देवों में ऐसा नहीं देखा जाता है। उन चार प्रकार के देवों पर कोई उनसे भी महर्द्धिक देव अशुभ पुद्गल प्रक्षेप करता है तो वे यक्षावेश उन्माद से ग्रस्त होते हैं।
मोहनीयजन्य उन्माद : मोहनीय कर्म के उदय से आत्मा के पारमार्थिक विवेक का नष्ट हो जाना यानी सत्-असत् के ज्ञान का नष्ट हो जाना मोहनीय उन्माद कहलाता है। मिथ्यात्वमोहनीय उन्माद और चारित्र-मोहनीय उन्माद इसके दो रूप होते हैं। मिथ्यात्वमोहनीय उन्माद के होने से जीव तत्त्व को अतत्त्व तथा अतत्त्व को तत्त्व समझता है। ठीक इसी तरह चारित्रमोहनीय के होने से जीव विषयादि के स्वरूप को जानता हुआ भी अज्ञानी के समान उसमें प्रवृत्ति करता है, या फिर चारित्रमोहनीय की वेद नामक प्रकृति के उदय से जीव हिताहित भान भूलकर स्त्री आदि में आसक्त हो जाता है या फिर मोह के नशे में पागल हो जाता है। तीव्र वेद (काम) के उदय होने से पीड़ित (उन्मत्त) जीव के दस लक्षण बताये गये हैं १४ :(१) तीव्र काम से उन्मत्त व्यक्ति विषयों, कामभोगों या स्त्रियों आदि का
चिन्तन करता है।
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