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________________ ४८ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर २००८ क्षिप्तचित्त व्यक्ति का लक्षण (१) क्षिप्तचित्त होने से व्यक्ति इधर-उधर परिभ्रमण करता है। साथ ही वह पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, वनस्पति और त्रस आदि षट्कायिक जीवों की विराधना करता है। (२) अग्नि आदि के द्वारा क्षिप्तचित्त व्यक्ति धान्यादि को जला देता है, वह स्वयं अपने को तथा दूसरे को भी मारता पीटता है। जब वह दूसरे को मारता पीटता है तो लोग उसे भी मारते-पीटते हैं। (३) आश्रव-द्वारों में चिरकाल तक क्षिप्तचित्त व्यक्ति बहुत प्रकार से लोक और लोकोत्तर विरुद्ध प्रलाप करता है। दीप्तचित्त : क्षिप्तचित्त के ठीक विपरीत स्वभाववाला दीप्तचित्त होता है। क्षिप्तचित्त और दीप्तचित्त में अन्तर यह है कि क्षिप्तचित्त प्रायः मौन रहता है जबकि दीप्तचित्त अनावश्यक बक-बक किया करता है। दीप्तचित्त को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि जिनका हृदय लाभ आदि के मद से परवश हो गया हो, वह दीप्तचित्त है । " दीप्तचित्त होने के कारणों पर प्रकाश डालते हुए बताया गया है कि क्षिप्तचित्त होने का मुख्य कारण अपमान है, जबकि विशिष्ट सम्मान से मद होने के कारण व्यक्ति चित्त हो जाता है। लाभ मद से मत्त होने पर अथवा दुर्जय शत्रुओं की जीत के मद से उन्मत्त होने पर, जैसे सातवाहन दीप्तचित्त हो गया था या फिर इसी प्रकार किसी अन्य कारण से व्यक्ति दीप्तचित्त बनता है। ' क्षिप्तचित्त व्यक्ति का उपचार आगमों में ऐसा वर्णन मिलता है कि मानसिक रोगों से ग्रसित रोगियों की चिकित्सा का आयोजन किया जाता था। भूत-पिशाच आदि से विक्षिप्त चित्त हो जाने पर रोगी को कोमल बन्धन से बाँधकर शस्त्र आदि से रहित स्थान में रखने का विधान बताया गया है। यदि कहीं ऐसा स्थान न मिले तो रोगी को पहले से ही खुदे हुए गड्ढे या नया गड्ढा खुदवाकर उसमें रख देने का विधान है, जिससे रोगी बाहर न निकल सके। यदि वात आदि के कारण धातुओं का क्षोभ होने पर कोई विक्षिप्तचित्त हो गया हो तो रोगी को स्निग्ध और मधुर भोजन देने और उपलों की राख पर सुलाये जाने का विधान है। यदि कोई साधु विक्षिप्तचित्त होकर भाग जाता है तो उसकी खोज करने और यदि वह राजा आदि का रिश्तेदार है तो राजा से निवेदन करने का विधान बताया गया है। " यदि राजा आदि का लड़का क्षिप्तचित्त हो जाता है और राजा यदि कहता है तो साधु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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