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४६ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३/जुलाई-सितम्बर २००८ कभी-कभी उसमें अन्तर्दृष्टि भी उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण वह अपने किये कर्मों के लिए क्षमायाचना भी करता है।
(३) प्रलापी उन्माद (डिलीरियलमैनिया): यह उन्माद की तीव्रतम अवस्था होती है। इसमें उन्माद का पूर्णतः विकास हो जाता है। इसमें रोगी को किसी बात का होश नहीं रहता। उससे किसी विषय पर बात करना असंभव हो जाता है। उसमें आक्रामक तथा विध्वंसात्मक गतिविधियां बढ़ जाती हैं। उसके चेहरे में परिवर्तन तथा आँखों में चमक दिखाई देती है। उसके व्यवहार असामान्य हो जाते हैं। जैसे भोजन के लिए कहने पर वह इन्कार करता है और क्षणभर में ही खाना शुरू कर देता है।
अवसाद मनस्ताप के भी तीन प्रकार होते हैं :(१) सरल अवसाद (सिम्पुल डिप्रेसन) (२) तीव्र अवसाद (एक्यूट डिप्रेसन)
(३) अवसादी जडिमा (डिप्रेसन स्टुपर) उन्माद के कारण
उन्माद के कारणों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है
(१) मनोवैज्ञानिक कारण : उन्माद का रोगी स्वयं को वास्तविक जगत् में खो देना चाहता है। यदि वह किसी से प्रेम करने में असफल हो जाता है तो विभिन्न क्लबों, पार्टियों आदि में वह अपने को इतना व्यस्त रखना चाहता है कि वह अपने मनस्ताप को भूल जाये। वह हमेशा अपने को व्यस्त रखता है और अपनी शक्ति का व्यय करता है। इस प्रकार वह अपने को झूठा विश्वास दिलाता है कि वह बड़ी से बड़ी समस्या का भी सामना कर सकता है।
(२) सामाजिक कारण : उन्माद का रोगी निम्न वर्गों में ज्यादा पाया जाता है। सामाजिकता या आर्थिकता की दृष्टि से जो वर्ग निम्न स्तर पर होते हैं, उन्हीं में मनस्ताप का रोग ज्यादा देखा जाता है। अध्ययन के आधार पर उन्माद रोग के सम्बन्ध में निम्नलिखित जानकारी हुई है
(क) उच्च शैक्षिक, व्यावसायिक, सामाजिक, आर्थिक स्तरों के लोगों में निम्नस्तरीय लोगों की अपेक्षा उन्माद कम होता है।
(ख) ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरों में उन्माद की मात्रा तिगुनी होती है। कह सकते हैं कि गाँव की तुलना में शहर में तिगुने उन्मादी होते हैं।
(ग) विवाहित तथा विधुरों की अपेक्षा तलाक लेनेवालों में या अन्य किसी कारण से अलग होनेवाले स्त्री-पुरुषों में उन्मादी की संख्या अधिक होती है।
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