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पाश्चात्य एवं जैन मनोविज्ञान में मनोविक्षिप्तता एवं उन्माद : ४५
उन्माद-अवसाद मनस्ताप के सम्बन्ध में विभिन्न विवेचन प्राचीन काल के मिस्री, यहूदी तथा यूनानी चिन्तकों के लेखों से मिलते हैं। यूनान के एक प्रख्यात चिकित्सक हिप्पोक्रेटीज ने मानसिक रोगों का विश्लेषण करते हुए उनके तीन प्रकार
बताये हैं- उन्माद, अवसाद तथा मस्तिष्क शोथ (फ्रेनिटिस)। . उन्माद-अवसाद के सामान्य लक्षण
उन्माद-अवसाद के रोगियों के सम्बन्ध में यह बताया गया है कि कुछ में केवल उन्माद होता है तो कुछ में सिर्फ अवसाद। परन्तु ऐसे भी रोगी पाये जाते हैं जिनमें बारी-बारी से उन्माद और अवसाद दोनों ही होते हैं। उन्माद अवसाद में प्रमुख रूप से संवेग का हाथ होता है। रोगी उल्लास तथा विवाद के तीव्र संवेगों का अनुभव करता है। उन्माद की स्थिति में वह ज्यादा आशावादी हो जाता है। उसमें उत्साह बढ़ जाता है और कार्यों में गतिशीलता आ जाती है। उन्माद की स्थिति में व्यक्ति में न तो एकाग्रता होती है और न कामवासना सम्बन्धी प्रतिबन्ध। वह अपने को महान शासक, धार्मिक, वैज्ञानिक आदि समझने लगता है।
___अवसाद से पीड़ित व्यक्ति में उदासी बढ़ जाती है और उसे एकाकीपन महसूस होता है। उसे ऐसा लगता है कि दुनियाँ दुःखमय है। वह हमेशा चिन्तित रहता है, उसकी गति शिथिल हो जाती है, आवाज धीमी हो जाती है। वह स्वयं अपने को विभिन्न अपराधों का दोषी समझने लगता है। उन्माद के प्रकार
उन्माद के तीन प्रकार होते हैं :
(१) अल्पोन्माद (हाइपोमैनिया): यह उन्माद का सबसे मन्द रूप है। इसमें रोगी को थोड़ा उल्लास मालूम पड़ता है। उसे अपनी योग्यता में विश्वास बढ़ जाता है और उसकी गति तीव्र हो जाती है। वह लगातार काम करने पर भी थकान नहीं महसूस करता है। बातचीत करते समय वह अधिक बोलता है और विरोध करनेवालों को कम बुद्धिवाला समझता है। वह पैसे भी अधिक खर्च करता है।।
(२) तीव्र उन्माद (एक्यूटमैनिया): इसमें अल्पोन्माद के सभी लक्षण देखे जाते हैं किन्तु अल्पोन्माद में लक्षण कम मात्रा में होते हैं जबकि तीव्र उन्माद में उनकी मात्रा अधिक हो जाती है और तीव्रता बढ़ जाती है। रोगी एक मिनट भी शान्त नहीं बैठ पाता है और उसकी प्रवृत्ति आक्रामक हो जाती है। वह तोड़-फोड़ और मारपीट भी करने लगता है। उसकी बातों में इतनी तीव्रता आ जाती है कि वह निरर्थक जान पड़ती है। उसे समय, स्थान और व्यक्ति को पहचानने में भी कठिनाई होती है।
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