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४४ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३/जुलाई-सितम्बर २००८ ज्ञान होता है। मनोविक्षिप्त रोगी वास्तविकता से बहुत दूर हो जाता है, इसलिए वह अपने तथा दूसरों के लिए खतरनाक समझा जाता है। वह नियंत्रण से बाहर होता है, इसलिए उसे मानसिक रोग के चिकित्सालय में भेज दिया जाता है। मनोविक्षिप्त के लक्षण
(१) भ्रान्ति (डिल्यूजन) : मनोविक्षिप्त रोगी में भ्रान्तियाँ देखी जाती हैं। वह किसी प्रमाण और तर्क को स्वीकार नहीं करता। सामान्य व्यक्ति तर्क और प्रमाण प्राप्त हो जाने पर अपनी गलती या अन्धविश्वास को सुधार लेता है, किन्तु मनोविक्षिप्त रोगी ऐसा नहीं करता क्योंकि वह तर्क को नहीं मानता।
(२) विभ्रम (होलिसिनेशन) : मनोविक्षिप्त को बिना बाह्य उद्दीपक के ही वस्तु का प्रत्यक्षीकरण होने लगता है।
(३) अनभिविन्यास (डिसोरिएन्टेशन) : अनभिविन्यास की स्थिति में मनोविक्षिप्त रोगी को वास्तविकता से सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। वह यह भी नहीं जानता है कि वह कौन है, कहाँ है, कौन-सा दिन है, कौन-सा सप्ताह है, आदि।
(४) संवेगात्मक विक्षोभ (इमोशनल डिस्टर्बेन्स): मनोविक्षिप्त रोगी प्रायः कई तरह के संवेगात्मक विक्षोभों से ग्रस्त होता है। कुछ में आवेग की मात्रा अधिक होती है तो कुछ में संवेगात्मक अनुक्रिया की कमी होती है। आवेगी रोगी के विषय में यह नहीं जाना जा सकता कि वह कब क्या कर बैठेगा। वह अकस्मात क्रोध, आक्रमण और कामुकता प्रदर्शित करने लगता है, जिनमें संवेगात्मक अनुक्रिया की कमी होती है, वे न मुस्कुराते हैं और न हँसते ही हैं।
उन्माद
उन्माद एक प्रकार का मनस्ताप होता है। मनस्ताप को परिभाषित करते हुए अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन ने कहा है
'मनस्तापीय विकारों की विशेषता यह है कि इनमें विभिन्न मात्राओं में व्यक्तित्वविघटन होता है। विभिन्न क्षेत्रों में बाह्य वास्तविकता, सही परीक्षण और मूल्यांकन की क्षमता समाप्त हो जाती है। इसके अलावा इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति अन्य लोगों और अपने कार्यों से स्वयं को सम्बद्ध करने में असफल रहते हैं।'२
मनस्तापों में कुछ ऐसे होते हैं जिनमें संवेग भाव तथा मूड के तीव्र विकार पाये जाते हैं। उनकी दो श्रेणियां होती हैं :
(१) उन्माद-अवसाद मनस्ताप (मेनिक डिप्रेसिव साइकोसिस) (२) प्रत्यक्कालिक मनस्ताप प्रतिक्रियाएँ (इन्वोल्यूशनल साइकोटिक रिएक्शन)
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