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४२ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३/जुलाई-सितम्बर २००८
फलु जाव ताव बंधव सयण, आवासिय पायवि जिह सउण।।६।। पउमचरिउ, स्वयंभू, हिन्दी अनुवाद-देवेन्द्र कुमार जैन, प्रका०- भारतीय ज्ञानपीठ,
काशी, वर्ष १९५८, ३९/११ २. कयतिहुयणसेवें चिंतिउ देवें जगि धुउ किं पि ण दीसइ।
जिह दावियणवरस गय णीलंजस तिह अवरु वि जाएसइ ।।१।। इहसंसारेदारुणे बहुसरीरसंदारणे। वसिऊणं दो वासरा के के ण गया णरवरा।।१।। पुणु परमेसरु सुसमु पयासइ.................णासइ। हय गय रह भड धवलईं छत्तइं............णं पिक्कउ फलु।। महापुराण,
सम्पा०- पी०एल० वैद्य, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, १९७९, ७/१ ३. अहो नरिंद संसारि असारइ तक्खणि दिट्ठपण? वियारइ।
पावि मणुअजम्मुजण वल्लहु बहुभव कोडि सहासिं दुल्लहु। जो अणुबंधु करइ रइ लंपडु तहो परलोए पुणुवि गउ संकडु। जइ वल्लह विओउ नउ दीसइ जइ जोव्वणु जराए न विणासइ। जइ उसरइ.............. वि तो विमं मज्झहि। भविसयतकहा, १८/१३/१ सुदि वंधव पुत्त कलत्त मित्त, ण वि कासुविदीसहिं णिच्चहत। जिम हुँति मरतिं असेस तेम, वुव्वु व जलि घणि विरिसंति जेम। जिमसउणि मिलिवितरुवरवसंति, चाउद्दिसि णिय वसाणि जन्ति। हरिवंशपुराण,
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५. कम्मेण परिट्ठिउ जो उमरे जमराएं सो णिउणिययपुरे।
जो बालउ बालहिं लालिहु सो विहिणा णियपुरि चालियउ। णव जोव्वणि चडियउ जो पवरु जमुजाइ लएविणु सो जि णरु। करकंडचरिउ, ९/५/१-४
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