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________________ पदार्थ बोध की अवधारणा : ३५ जैन दर्शन के अनुसार पद और वाक्य दोनों परस्पर सापेक्ष तथा वाक्यार्थ बोध में समान रूप से बलशाली हैं। यहाँ अभिहितान्वयवाद और अन्विताभिधानवाद में समन्वय स्थापित करते हुए कहा गया है कि वाक्यार्थ- बोध में पद और वाक्य दोनों की भूमिका है, अतः किसी एक को प्रधानता नहीं दी जा सकती । पद और वाक्य दोनों एक-दूसरे से पूर्णतः न भिन्न हैं और न पूर्णत: अभिन्न । संदर्भ : १. २. ५. श्रोतेन्द्रियग्राह्यनियतक्रमवर्णात्मनि ध्वनौ । अभिधानराजेन्द्र कोश, पृ० ३३८. भासाणं भंते । किं यवहा? गोयमा । सरीरप्पभवा भास । भाषावाद, ११.१५ ३. सुप्तिन्तं पदम् । अष्टाध्यायी, १/१/१४. ४. पदं च द्विविधं नाम आख्यातं च, उपसर्गनिपातकर्मप्रवचनीयानामपि नामान्तर्भावमाचक्षते । न्यायमञ्जरी, भाग १, पृ० २७१. ते विभक्त्यन्ता पदम् - न्यायसूत्र २ / २ / ६०. द्रष्टव्य - न्यायभाष्य, २/२/६०. शक्तं पदम् । अपिच, अर्थस्मृत्यनुकूलः पदपदार्थसम्बन्धः शक्तिः । तर्कदीपिका, पृ० ५०. ८. पद्यते ज्ञायतेऽर्थोऽनेनेति पदम् । अभिधानराजेन्द्र कोश, खण्ड ५ पृ० ५०२ ६. ७. प्रज्ञापनासूत्र, ९. सांख्यतत्त्वकौमुदी, पृ० ११९ में संकेत ग्रह के लिए अनुमान के उपयोग पर लेखक द्वारा उपपत्ति प्रदर्शन । १०. प्रयोगप्रतिपत्तिभ्यां तद्वानर्थ इति स्थितम्। न्यायमञ्जरी, भाग १, पृ० २९७. ११. वक्तुरभिप्रायः नयः । स्याद्वादमंजरी, पृ० २४३ १२. पद ज्ञानं तु करणं द्वारं तत्र पदार्थधीः । शाब्दबोधः फलं तत्र शक्तिधीः सहकारिणी ॥ कारिकावली, ८१. १३. अस्मात्पदादयमर्थो बोद्धव्य इतीश्वरसंकेत: शक्तिः । तर्कसंग्रह, पृ० ५०. १४. वृत्तिनार्म शक्तिलक्षणान्यतररूपा। न्यायबोधिनी, पृ० ५२. १५. अयमस्थ पदस्यार्थ इति केचित् स तेन वा । योऽर्थः प्रतीयते यस्मात् स तस्यार्थ इति स्मृतिः ।। वही, पृ० २९९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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