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________________ ३४ 4. श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर २००८ हो जाती है । २४ जिस प्रकार से 'गंगायां घोष:' इस वाक्य में गंगायाम् पद से प्रवाह रूप अभिधेयार्थ के आधारत्व की अनुपपत्ति होने के कारण प्रमाणान्तरगम्य वक्तृतात्पर्य के अनुकूल तट रूप अर्थ में शब्द का व्यापार पर्यवसित होता है। इसी प्रकार 'मम धम्म वीसत्थो' आदि में यद्यपि अभिधान शक्ति विधि- पर्यवसायिनी है, तथापि तात्पर्य के पर्यवसित न होने के कारण और विधिपरक अर्थ में पदार्थों का अन्वय समुचित न होने के कारण 'मा भ्रमी' एतद्रूप निषेध में वाक्यार्थ का पर्यवसान होता है । २५ अतएव व्यंजनावृत्ति या ध्वनि को स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है। तात्पर्य शक्ति पदनिष्ठ अभिधा और लक्षणा शक्तियों के अतिरिक्त जयन्त भट्ट ने पद में तात्पर्य-शक्ति स्वीकार किया है। इस तात्पर्य-शक्ति का उपयोग पदार्थबोध में न होकर वाक्यार्थ बोध में होता है। २६ वस्तुतः आचार्य जयन्त न तो भाट्ट मीमांसकों, नैयायिकों एवं वेदान्तियों के अभिमत अन्विताभिधानवाद के शाब्दबोध को स्वीकार करते हैं और न ही अन्विताभिधानवाद को । शाब्दबोध के सम्बन्ध में पदार्थों का अन्वय किसी न किसी रूप में सभी सखण्ड - वाक्यवादियों को अभीष्ट है। आचार्य जयन्त भट्ट संसृष्ट पदार्थों को वाक्यार्थ मानते हैं। अभिहितान्वयवादी नैयायिकों के अनुसार पदार्थों का संसर्ग, संसर्ग-मर्यादा से होता है और भाट्टों के अनुसार पदगत लक्षणाशक्ति से अभिहित पदार्थों का संसर्ग होता है । गुरुमत में पद की अभिधाशक्ति द्वारा ही इतरेरान्वित पदार्थों का अभिधान होता है। वैयाकरणों के अनुसार अखण्ड वाक्य से अखण्ड प्रतिभा वाक्यार्थ का बोध होता है, जहाँ पदार्थों के संसर्ग की आवश्यकता ही नहीं होती। इस प्रकार पदार्थों में संसर्ग मानने वाले दार्शनिकों ने संसर्ग की प्रतीति अभिधा या लक्षणा द्वारा ही स्वीकार किया है, परन्तु भारतीय दर्शन के इतिहास में जयन्त भट्ट पहले ऐसे दार्शनिक हैं जिन्होने पदार्थ-संसर्ग को स्वीकार करते हुए भी संसर्ग - प्रतीति के लिए अभिहितान्वयवाद और अन्विताभिधानवाद दोनों का खण्डन किया है और पदार्थों का संसर्ग पद की तात्पर्य शक्ति से स्वीकार किया है। २७ आचार्य जयन्त भट्ट का मत है कि पद की अभिधाशक्ति केवल पदार्थ का ज्ञान कराती है और पदार्थों के संसर्ग का ज्ञान पदों की तात्पर्य शक्ति से होता है। २८ आचार्य जयन्त भट्ट का अपना शाब्दबोध सिद्धान्त संहत्यकारितावाद कहलाता है जिसका अर्थ यह है कि पद मिलकर वाक्यार्थ का बोध कराते हैं । संसर्ग का बोध अभिधाशक्ति से न होकर सम्मिलित पद रूप वाक्य के पदों की तात्पर्यशक्ति से होता है । वाक्यार्थ बोध में पदार्थ बोध अवान्तर व्यापार है जो पदों की अभिधा शक्ति से सम्पन्न होता है, जबकि पदों की तात्पर्य शक्ति से पदार्थों का अन्वित रूप में ज्ञान होता है। इस प्रकार शाब्दबोध में तात्पर्य शक्ति प्रधान कारण है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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