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पदार्थ बोध की अवधारणा : ३३
यदि वाक्य के मुख्यार्थ की अन्वर्थता में बाधा पडती हो, तब निश्चित ही गौणवृत्ति या लक्षणावृत्ति द्वारा पदों के अर्थ का ग्रहण करके वाक्यार्थबोध की उपपत्ति की जाती है। अतएव एक ही पद भिन्न अर्थों की प्रस्तुति में भिन्न-भिन्न प्रकार से निमित्त होता है। अभिधेय अर्थ में जो पद अभिधावृत्तिनिष्ठ होकर निमित्त होता है, वही पद लक्ष्यार्थ में लक्षणावृत्तिनिष्ठ होकर निमित्त बनता है।८ आचार्य जयन्त भट्ट ने वाक्य में कुछ शब्दों के अदर्शन को भी स्वीकार किया है। जहाँ मुख्यवृत्ति द्वारा अर्थ का प्राकाट्य न हो रहा हो, वहाँ निश्चित रूप से कोई पद अदृष्ट है, जिससे अर्थ के अन्वय में बाधा पड़ती है। अत: जयन्त भट्ट का मत है कि वाक्य से अर्थ ग्रहण करते समय वाक्यगत दृष्ट और अदृष्ट सभी पद मिलकर अर्थाभिव्यक्ति में सहायक होते हैं।
जैन दार्शनिक शब्द और उसके अर्थ में सम्बन्ध स्वीकार करते हैं किन्तु उसे नित्य नहीं मानते, क्योंकि भाषा के प्रचलन में कई बार शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं, साथ ही एक समान उच्चारण के शब्द भी दो भिन्न भाषाओं में भिन्न अर्थ रखते हैं। जैन दार्शनिकों के अनुसार शब्द अपने अर्थ का संकेतक अवश्य है लेकिन शब्द का अर्थ के साथ न तो तदुत्पत्ति सम्बन्ध है और न तद्रूपता सम्बन्ध ही है। उनकी मान्यता है कि शब्दों में अपने अर्थवाच्य होने की सीमित सामर्थ्यता होती है, अतः शब्द-संकेत अपने अर्थ से अनित्य रूप से सम्बन्धित होकर अर्थबोध करा देते हैं।१९ व्यंजना का खण्डन
शब्द की इस द्विविध सामर्थ्य से भिन्न अन्य किसी सामर्थ्य या वृत्ति को स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है। वाक्यगत सभी पद अपना पूर्ण अर्थ स्पष्ट करने में इसी द्विविध शब्द-सामर्थ्य से ही समर्थ हो जाते हैं, अतः मुख्य और गौण अर्थ से भिन्न प्रतीयमान अर्थ को स्पष्ट करने के लिए व्यंजना को अलग वृत्ति नहीं स्वीकार करनी चाहिए, आलंकारिकों की व्यंजनावृत्ति को ही ध्वनिवादी आचार्यों ने ध्वनि शब्द से अभिहित किया है।२० आचार्य जयन्त भट्ट ने उक्त शब्दसामर्थ्य से२१ वाक्यार्थोपपत्ति हो जाने के कारण व्यंजना और ध्वनि दोनों का इसी हेतु से निषेध कर दिया। व्यंजनावादी और ध्वनिवादी आचार्य यह हेत देते हैं कि कभी-कभी वाक्य अपने पदों द्वारा अभिधेय अर्थ से भिन्न प्रतीयमान अर्थ को स्पष्ट करता है जिससे अभिधा और लक्षणा से भिन्न एक स्वतन्त्र शब्द सामर्थ्य स्वीकार करना चाहिए।२२ जयन्त भट्ट का अभिमत है कि शाब्दबोध में वक्ता के तात्पर्य का ज्ञान मुख्य कारण होता है, अतएव वक्तृतात्पर्य की निर्णय-बेला में अर्थ का निर्णय एवं उपपत्ति हो जाती है।२३ वक्ता के तात्पर्य का ज्ञान अनुमान प्रमाण से होता है। वाक्यगत शब्द चूँकि वक्ता के तात्पर्य का ही उपदेश करते हैं और वक्तृतात्पर्य शब्द के अतिरिक्त अनुमान प्रमाण से भी जाना जा सकता है। अत: अनुमानगम्य वक्तृतात्पर्य द्वारा वाक्यार्थ की उपपत्ति
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