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श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३/जुलाई-सितम्बर २००८
को है। आधुनिक भारत के निर्माता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अनेकान्तवाद से प्रभावित दिखते हैं, उन्होंने कहा है- 'मैं इस सिद्धान्त (अनेकान्तवाद) को बहुत अधिक पसंद करता हूँ। इसी सिद्धान्त ने मुझे सिखाया है कि मुसलमान को उसकी दृष्टि से जानना चाहिए और ईसाई को उसके अपने मत से।'१०
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि सामाजिक विभिन्नताओं के बीच सामंजस्य एवं पारस्परिक स्नेह को कायम रखने में अनेकान्तवाद की अहम् भूमिका होगी। आवश्यकता है इसे जीवन में उतारने की। संदर्भः
१. उपाध्याय, आचार्य बलदेव, भारतीय दर्शन, वाराणसी, १९७९, पृ० ९१. २. भगवतीसूत्र, संपा०- घासीलालजी महाराज, प्र०- अ०भा०श्वे० स्था०
जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, १९६८, श० १६, उ० ६, सू० ३. ३. सूत्रकृतांगसूत्र, सम्पा०- युवाचार्य मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति,
ब्यावर, १/१/४/२२. ४. न्यायदीपिका, सम्पा०- पं० दरबारीलाल कोठिया, वीर सेवा मंदिर
ग्रंथमाला-४, सहारनपुर, १९४५, अ० ३, श्लो०- ७६. ५. तत्त्वार्थसूत्र : विवे० पं० सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी,
५/२९ ६. न्यायकुमुदचन्द्र, भाग-२, संपा०- पं० महेन्द्र कुमार, माणिकचन्द दि०
जैन ग्रंथमाला - ३८, बम्बई १९४१, पृ० ६८६. 6. 'Spirituality, Science and Technology'paper presented
by Prof. K. C. Sogani in 'World Philosophy
Conference 2006' in New Delhi. ८. स्थानांगसूत्र, सम्पा०- युवाचार्य मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति,
ब्यावर, १०/७६०. ९. विवेकानन्द, ज्ञानयोग, पृ० ३७३. १०. महात्मा गाँधी, हिन्दू धर्म, पृ० ६२.
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