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________________ वर्तमान संदर्भ में अनेकान्तवाद की प्रासंगिकता : २७ प्रतिपादित अनेकान्तवादी विचार को राजनेता, जन प्रतिनिधि अपनाने का प्रयास करें तो प्रजातंत्र का सही क्रियान्वयन हो सकेगा। फलस्वरूप एक सुदृढ़ समाज का निर्माण संभव है। आगमों में वर्णित कुलधर्म, ग्रामधर्म, नगरधर्म, राष्ट्रधर्म और गणधर्म सामाजिक सापेक्षता को स्पष्ट करते हैं। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है - 'धर्म ने मानव और मानव के बीच जितनी कटु शत्रुता को प्रसारित किया है, उतनी किसी दूसरे ने नहीं किया है। क्योंकि धर्म के ठेकेदारों के मस्तिष्क में यह बात घर कर गयी है कि केवल उन्हीं का धर्म एवं उन्हीं की उपासना पद्धति एक मात्र सत्य है और दूसरे की गलत। केवल वे ही ईमानदार हैं, शेष सभी विधर्मी एवं 'काफिर' हैं। इसका मुख्य कारण है धर्म के यथार्थ स्वरूप को न समझना। धर्म का कार्य एकता, समानता, पुरुषार्थ आदि गुणों से मनुष्यों को दीक्षित करना है, न कि परस्पर विरोधी उपदेशों से समाज में भेद-भाव उत्पन्न करना। सभी धर्म एकान्तिक भाव से ग्रसित हैं। धार्मिक क्षेत्र में उत्पन्न समस्याओं का समाधान अनेकान्तवाद के पास है। उसके अनुसार महावीर भी हैं, राम भी हैं और रहीम भी हैं। सभी धर्मों के साथ समन्वयवादी दृष्टि जैन दर्शन प्रस्तुत करता है। यदि हम भावात्मक एकता और सहिष्णुता की भावना को अपना लें तो बड़े प्रेम और शान्ति से रह सकते हैं। सभी धर्म वाले एक-दूसरे धर्म का आदर करें, एक धर्म दूसरे धर्म की सत्यता को स्वीकार करे। यह तभी संभव है जब जैन दर्शन के अनेकान्त मार्ग को अपनाया जाए। आज राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आये दिन संघर्ष की स्थिति देखी जा रही है। आज प्रत्येक राष्ट्र अपने हितों की रक्षा और सुरक्षा के विषय में चिन्तित है। कभी क्षेत्रवाद के आधार पर बिहार, झारखंड, आसाम, पंजाब आपस में झगड़ रहे हैं, तो कभी भारत एवं पाकिस्तान एक-दूसरे से लड़ रहे हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एकान्तिकता एवं दुराग्रह का भाव देखा जा रहा है। विश्व अनेक गुटों में बँटा है - समाजवाद, साम्यवाद, पूँजीवाद, लोकतंत्रवाद आदि। ये सभी शासन प्रणाली और सामाजिक संगठन में सुधार की बात करते हैं और अपने को मानव जाति का पोषक मानते हैं। प्रत्येक देश का प्रत्येक दल केवल अपने को एवं अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों को सर्वोत्तम मानता है। प्रत्येक दल एवं गुट यह समझता है कि केवल उसके अनुयायी और सदस्य ही देश के प्रशासनिक पदों के योग्य हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समन्वयात्मक दृष्टि का अभाव देखा जा रहा है। सभी एकान्तिक भाव से ग्रसित है। यह एकान्तिकता तभी समाप्त हो सकती है जब अनेकान्तवाद को अपनाया जाए। अगर एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की भावना को समझे, एक गुट दूसरे गुट की भावना का समादर करे तो राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है। अनेकान्तवाद की आवश्यकता आज सारे विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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