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________________ २६ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३/जुलाई-सितम्बर २००८ मानव का अनैकान्तिक स्वरूप स्वतः सामने आ जाता है। मानव जन्म से एकान्तिक नहीं होता। परिस्थितियाँ और परिवेश उसे एकान्तिक बना देते हैं। नवजात शिशु जातिवाद या ऊँच-नीच के भेदभाव को नहीं जानता। वह नही जानता कि मैं किस कुल और किस जाति में पैदा हुआ हूँ। वह नहीं जानता कि मैं अमीर के घर पैदा हुआ हूँ या गरीब के घर। लेकिन जैसे-जैसे वह सामाजिक बन्धनों से आबद्ध होता जाता है उसके अन्दर का निश्छल प्रेम संकुचित होता जाता है। उसके इसी संकुचन का परिणाम है कि वह दिन-प्रतिदिन सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक व राष्ट्रीय समस्याओं में उलझता जा रहा है। आज उसमें घृणा, द्वेष, छुआ-छूत, जाति-पाति, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब के भेद-भाव निवास करते हैं जो दुराग्रहपूर्ण एकान्तिकता के भाव हैं। जैन धर्म-दर्शन की मान्यता है कि विश्व के जितने भी मनुष्य हैं, वे सभी . मूलत: एक ही हैं। कोई भी जाति अथवा कोई भी वर्ग, मनुष्य जाति की मौलिक एकता को भंग नहीं कर सकता। मनुष्य जन्म से ऊँचा या नीचा नहीं होता, बल्कि कर्म से होता है। मानव का जन्म एक महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्त्व तथा कर्तव्य के साथ हुआ है। अतएव मनुष्य को सामाजिक बुराइयों से छुटकारा पाने का प्रयत्न करना होगा। सामाजिक बुराईयों एवं विभिन्नताओं के बीच सामंजस्य एवं पारस्परिक स्नेह को कायम रखने और मानव-मानव के बीच प्रेम, सहिष्णुता, शान्ति के साथ-साथ स्वतंत्रता, समानता एवं बन्धुत्व के आदर्श को स्थापित करने में अनेकान्तवाद की अहम् भूमिका हो सकती है। डॉ. कमलचन्द सोगानी ने सामाजिक पुनर्निर्माण में अहिंसा, अनेकान्तवाद आदि की महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है - 'The Social values which were regarded by Mahāvīra as basic are ahimsā, aparigraha and anekānta. These three are the consequence of Mahāvīra's devotedness to the cause of social reconstruction." भारत एक प्रजातंत्रात्मक देश है। किन्तु आज प्रजातांत्रिक प्रणाली दूषित हो गई है। प्रजातंत्र का वहीं समुचित विकास संभव है जहाँ लोग अधिकार के साथ-साथ कर्तव्य को भी समझते हों। भारतीय समाज का दुर्भाग्य है कि लोग अपने अधिकार तो समझते हैं, किन्तु वे अपने कर्तव्य से विमुख हैं। समाज में राजनीति का प्रवेश सामाजिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए हुआ, किन्तु राजनीति आज क्षुद्रता के दायरे में सिमट कर रह गई है। यद्यपि प्रजातांत्रिक प्रणाली में एकान्तवादिता को कोई स्थान नहीं दिया गया है, फिर भी राजनीतिक परिवेश में एकान्तवादिता का प्रवेश है, फलतः समाज में अनेकानेक बुराइयाँ दृष्टिगत हो रही हैं। आज समानता की बात की जा रही है, किन्तु सर्वत्र असमानता, दुराग्रह, एकान्तिकता का साम्राज्य है। यदि जैन दर्शन द्वारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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